कुल्लू दुर्घटना: समाई तुंग गांव की मां-बेटी समेत चार लोगों की चिताएं एक साथ जलाई गईं

हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू की सैंज घाटी की शैंशर पंचायत के जंगला गांव में निजी बस हादसे में मौत की आगोश में समाई तुंग गांव की मां-बेटी समेत चार लोगों की चिताएं एक साथ जलाई गईं। स्थानीय श्मशानघाट में चारों का अंतिम संस्कार किया गया। माहौल बेहद गमगीन था। परिजनों और ग्रामीणों के आंसू रुक नहीं रहे थे। रिश्तेदार और ग्रामीण उन्हें जीने का हौसला दे रहे थे। सोमवार सुबह हादसे के बाद परिजन बेसुध थे। मृतकों के परिवारों पर अचानक दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है। रात-भर रोते बिलखते रहे। तुंग गांव के एक भी घर में 24 घंटे से चूल्हा नहीं जला। पीड़ित परिजनों के साथ गांववासियों ने अन्न का एक दाना भी ग्रहण नहीं किया। बस हादसे के बाद शैंशर घाटी के अन्य गांवों के जिन परिवारों ने अपनों को खोया, वहां पर भी मातम का माहौल रहा। परिजनों के रोने की आवाजें दूर-दूर तक सुनाई देती रहीं। मंगलवार को कुछ नेता भी प्रभावितों का दुख साझा करने के लिए उनके घर पहुंचे। शैंशर हादसा परिजनों को कभी न भूलने वाला जख्म दे गया है। हादसे में अपनी पत्नी और बेटी को गंवा चुका पच बहादुर भी सदमे में है। इस हादसे में एक छात्र और दो छात्राओं समेत 13 लोगों की जान चली गई है। चालक और परिचालक की ही जान बच पाई है। 

सुनील का फीटर बनने का सपना रह गया अधूरा
सैंज के शैंशर बस हादसे में जान गंवा चुका सुनील कुमार जल शक्ति विभाग में फीटर बनकर गांववासियों की सेवा करना चाहता था, लेकिन उसे क्या पता था कि भगवान को कुछ और ही मंजूर था।  शैंशर के तुंग गांव में कई सालों से पानी का संकट है। यह गांव सड़क सुविधा से भी वंचित है। ग्रामीणों को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं मिलता है, जिसकी वजह से उन्हें पानी के लिए भटकना पड़ता है। प्राकृतिक स्रोत भी सूख गए हैं। ऐसे में सुनील कुमार फीटर बनकर पेयजल समस्या का समाधान करना चाहता था। मृतक के पिता निमत राम और माता प्रोमिला ने बताया कि बेटे का सपना फीटर बनकर गांववासियों की सेवा करना था। अब उसका सपना अधूरा रह गया, जो कभी पूरा नहीं होगा। वह आईटीआई सैंज में फीटर की ट्रेड में अपनी पढ़ाई कर रहा था, लेकिन बस हादसे में उसकी जान चले गई।

माता-पिता ने अपना दर्द बयां करने हुए कहा कि 22 वर्षीय सुनील उनका एकलौता बेटा था, जबकि दो बेटियां भी हैं। हादसे से उनके घर का चिराग बुझ गया है।  उन्होंने बताया कि बेटा रविवार की छुट्टी के चलते शनिवार शाम को ही घर पहुंचा था और सोमवार सुबह आईटीआई सैंज चला गया, लेकिन कभी सोचा नहीं था कि बेटे को जिंदा देखने का वह आखिर दिन होगा। इस बस हादसे में उन्होंने अपने जिगर के टुकड़े को खोया है, जिसका दुख ताउम्र रहेगा। माता-पिता ने कहा कि हादसे को कभी नहीं भूलाया जा सकता। इसमें कई परिवार टूटकर बिखर गए हैं। बता दें कि शैंशर के जंगला में हुए बस हादसे में 13 लोगों की मौत हुई है, जबकि चालक-परिचालक ही मौत के मुंह से बाहर आए हैं। अगर समय रहते मदद मिलती तो कई लोगों की जान बच जाती।

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