सुन तो सही जहां में है तेरा फ़साना क्या !

आज आपको 9 तथा 10 सितंबर 2020 के अख़बार के कुछ शीर्षक पढ़वा रहे हैं। इन्हें पढ़िये और परखिये आपके राज्य की कानून व्यवस्था कैसी है, पुलिस का इकबाल कैसा है, शासन का रुतबा कैसा है। खबरों के हेडिंग्स मुलाहिजा फरमाइये:
•मेरठ में सर्राफ की दिन दहाड़े हत्या कर लूटे 13 लाख• •कैबिनेट मंत्री को बम से उड़ाने की धमकी• प्रयागराज के एसएसपी निलंबित• •सिपाही की पिस्टल छीन आशु जाट ने किया भागने का प्रयास• •छेड़छाड़ को लेकर हंगामा• •बाइक चोरी करते रंगेहाथों दबोचा• •पुलिस हाथापाई, आरोपित को छुड़ाया• •सीओ की फेसबुक आईडी हैक, हड़कंप• •रुपए वापस लेने को रात भर की फायरिंग• •सामूहिक दुष्कर्म व वीडियो बनाने का आरोप• •मार्बल की दुकान में लाखों की चोरी• •दिन निकलते ही जिम ट्रेनर को गोलियों से भूना• •व्यापारी के घर साढ़े 10 लाख की लूट• •छेड़छाड़ के विरोध पर किशोरी की मां को चाकू मारा• •पीड़िता से बोला दरोगा, रात में मेरे कमरे में आओ• •दरोगा बोला मुझे खुश करोगे तो ही मेडिकल कराऊंगा•।

ख़त का मज़मूं भांप लेते हैं लिफाफ़ा देखकर- आपको समाचारों के विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है। समाचारों के शीर्षक ही प्रदेश की कानून व्यवस्था, पुलिस के गिरते वकार और शासकों की ढीली पकड़ का खुलासा करने को पर्याप्त है।

शासक कोई भी हो उसके इर्दगिर्द चाटुकारों और नौकरशाहों का घेरा बन जाता है जो उससे असलियत छुपाता है। जो शासक जनता और जन प्रतिनिधियों से सीधा संवाद बनाता है उसे कोई बरगला नहीं सकता। अधिकारीगण तो प्रायः ठकुरसुहाती कह कर शासक को भ्रम में रखने के माहिर होते हैं। कवि, शायर, साहित्यकार सदा से शासकों को जनता की स्तिथि और जनभावनाओं से अवगत रहने की बिन मांगी सलाह देते रहे है:
सुन तो सही जहाँ में है तेरा फ़साना क्या,
कहती है तुझ को ख़ल्क़-ए-ख़ुदा ग़ाएबाना क्या।

सी.बी गुप्ता, चौ.चरण सिंह, एच.एन बहुगुणा, एन.डी तिवारी, मुलायम सिंह यादव आदि नेता ब्यूरोक्रेटस के चक्रव्यूह में कभी नहीं फसें। एन.डी तिवारी तो विपक्ष को भी उतना ही मानते थे जैसे अपने दल के लोगों की बात सुनते थे और उनके काम भी खूब करते थे। शासक को सत्ता पक्ष एवं विपक्ष की बात तटस्थता से सुनने की जरूरत है। पहले तो शासक वेश बदल कर जनभावनाओं का पता लगाते थे। शासक का व्यापक जनहित में निंदक (आलोचक) से नजदीकी बनाकर रखना जरूरी है:
निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय, बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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