नालन्दा की मेधाशक्ति का प्रतीक है नन्हा सोनू कुमार

इन दिनों टी.वी. चैनलों और मीडिया में ज्ञानवापी मस्जिद, कांग्रेस के चिंतन शिविर, सुनील जाखड़ और हार्दिक पटेल छाये हुवे हैं। इन सब की बात न कर हम बिहार के एक 11 वर्षीय कक्षा 6 की पढ़ाई छोड़ चुके बच्चे सोनू का संदर्भ लेकर कुछ कहने का प्रयास कर रहे हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के गृह जनपद नालन्दा का रहने वाला है सोनू कुमार। उसने मुख्यमंत्री से पहले भी मिलने की कोशिश की किन्तु नितीश कुमार से उसकी भेंट 14 मई को ही हो सकी जब मुख्यमंत्री नालन्दा आये थे। सोनू ने नितीश कुमार से कहा कि आपकी शिक्षा व्यवस्था चौपट है। हमें पढ़ाने वाले दीपक सर हिन्दी का अंग्रेजी में और अंग्रेजी का हिन्दी में अनुवाद नहीं कर सकते। आपकी शराबबन्दी की नीति भी फेल है क्योंकि मेरे पापा शराब में धुत रहते हैं। फीस न देने के कारण कक्षा 6 से मेरा नाम कट गया। मैं नर्सरी से कक्षा 5 तक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर घर का खर्चा चलाता हूं। मुख्यमंत्री ने सोनू से पूछा कि यदि तुम्हारी पढ़ाई का इन्तज़ाम हो जाये तो तुम क्या बनना चाहोगे तो सोनू ने तपाक से जवाब दिया- ‘आईएएस’।

मुख्यमंत्री से सीधी-सपाट बातचीत होने के दो परिणाम निकलने थे- पहला यह कि मुख्यमंत्री नितीश कुमार को जिला मजिस्ट्रेट को निर्देश देना था कि वे सोनू की पढ़ाई और पालन-पोषण की व्यवस्था करें, दूसरा यह कि सोशल मीडिया एवं टी.वी. चैनलों पर चर्चित होने से उसके पास वीवीआईपी लोगों की भीड़ लगना। बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री सुशील मोदी सोनू के गांव पहुंचे तो उसने कहा- सर आप आज तक गरीब लोगों की परेशानियां दूर नहीं कर सके। उनके पास सोने के प्रश्न का जवाब क्या था? हंस कर एक फूलमाला उसके गले में पहिना दी और उसे गोदी में बैठा कर फोटो खिंचवा लिया। लालू के लाल तेज प्रताप सिंह यादव भी सोनू के गांव पहुंचे। बोले- ‘तुम आईएएस बनना चाहते हो, तब तक हम भी मुख्यमंत्री बन जायेंगे, हमारे अंडर में काम करना।’ 11 साल के सोनू ने जवाब दिया- ‘नहीं, आपके अंडर में काम नहीं करना है।’

सोनू कुमार बिहार की उस माटी का सपूत है जहां बाबू राजेन्द्र प्रयाद जैसे कुशाग्रबुद्धि पैदा हुए जिन्होंने प्रश्नपत्र में आये सभी प्रश्नों को हल कर उत्तरपुस्तिका में लिख दिया था- ‘कोई से 10 जवाब देख लीजिये।’ बिहार कैडर के अनेक आई.ए.एस., आई.पी.एस., वैज्ञानिक, इंजीनियर पूरे देश में सेवा करते रहे हैं। बिहार के मंजूर अहमद, गणेश्वर झा व सिन्हा साहब (पूरा नाम अब विस्मृत हो गया है) आदि अनेक आईपीएस मुजफ्फरनगर में अपनी कुशलता व सुशासन का परिचय दे गये हैं।

सोनू तो उस नालन्दा जिले का निवासी है जहां कभी संसार का सबसे विशाल विश्वविद्यालय था। नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमार गुप्त प्रथम ने सन् 450-470 के बीच की थी। इस विश्वविद्यालय में संसार भर से आये दस हजार विद्यार्थी विभिन्न विषयों की शिक्षा ग्रहण करते थे। विश्वविद्यालय में ओपेन कैम्पस के साथ ही 300 कक्ष व 7 बड़े हॉल थे। पांच मंजिले पुस्तकालय में तीन लाख से अधिक पुस्तकें थीं। तुर्किस्तान से आये मुस्लिम हमलावर बख्तियार खिलजी ने इसे भारतीय संस्कृति व सभ्यता का प्रमुख केन्द्र होने के कारण ध्वस्त कर दिया। नालन्दा विश्वविद्यालय की विशालता का इसी से पता चलता है कि उसका पुस्तकालय तीन मास तक धूं-धूं कर जलता रहा था। प्राचीन धर्मग्रंथों को कंठस्थ करने की परम्परा को खिलजी के हमले के बाद बल मिला, यद्यपि वेदों को कंठस्थ करने की परम्परा भारत में प्राचीनकाल से ही थी।

सोनू कुमार प्रकरण का सबसे शर्मनाक पहलू यह है कि मुख्यमंत्री नितीश कुमार के निर्देश के पांच दिन बाद तक उसके पास जिला प्रशासन का कोई अधिकारी नहीं पहुंचा है, जबकि नितीश कुमार को सुशासन बाबू कहा जाता है। प्रश्न अकेले सोनू का नहीं, समूची व्यवस्था का है जिसके सुधार के दावे तो हर पार्टी का नेता करता है किन्तु वास्तविक धरातल पर स्थिति अत्यन्त निराशजनक है।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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