मध्यप्रदेश:देश में नदी संरक्षण का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट तैयार

चुनावी साल में धर्म और आस्था के साथ सियासत का केंद्र नर्मदा नदी को लेकर सरकार ने बड़ा निर्णय लिया है। पर्यावरण विभाग ने नर्मदा नदी के संरक्षण को लेकर अब तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट तैयार किया है। इस प्रोजेक्ट के तहत नर्मदा नदी की वास्तविक स्थिति का सर्वे किया जाएगा। मध्यप्रदेश में नर्मदा की कुल लंबाई 1 हजार 77 किलोमीटर है। ऐसा भी पहली बार होगा कि जिलेवार घाटों के आधार पर नर्मदा की गहराई, तट की स्थिति, कैचमेंट का जीआईएस सर्वे, वनस्पति के साथ नदी पर आश्रित जंगलों का पूरा खाका भी तैयार किया जाएगा। नर्मदा के जलीय जीवों का अपडेट डाटा भी सरकार के पास होगा। प्रोजेक्ट पर चरणबद्ध तरीके से काम होगा। पहले फेस में करीब 350 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।

दरअसल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पांच माह पहले गोवर्धन पूजन के दौरान लोगों से पर्यावरण संरक्षण की अपील करते हुए अधिकारियों को वृहद स्तर पर प्लान तैयार करने का निर्देश दिया था। इसके बाद पर्यावरण मंत्रालय ने नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट तैयार किया है। पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि नर्मदा नदी का यह प्रोजेक्ट एक तरह से पायलेट प्रोजेक्ट होगा। फिर प्रदेश की अन्य बड़ी नदियों में शामिल चंबल, सोन, ताप्ती, बेतवा समेत अन्य नदियों के संरक्षण संबंधित कवायद की जाएगी। राज्य सरकार प्रोजेक्ट को लेकर केंद्र की भी मदद लेगी। पर्यावरण मंत्रालय ने नर्मदा के रियल टाइम मॉनिटरिंग प्रोजेक्ट का मसौदा भी पांच माह पहले तैयार किया था। अब इस प्रोजेक्ट का विस्तार किया है।

इन बिंदुओं से समझिए आखिर क्या करने जा रही है सरकार

  • नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) हैदराबाद से नर्मदा नदी की सेटेलाइट इमेज बुलाई जाएंगी।
  • नर्मदा नदी के दोनों ही तट (उत्तर और दक्षिण) का जीआईएस सर्वे किया जाएगा।
  • नर्मदा के ग्रीन लैंड और कैचमेंट एरिया की ग्राउंड रिपोर्ट तैयार की जाएगी।
  • नर्मदा नदी से 300 मीटर तक हुए निर्माणों की सूची तैयार की जाएगी। इनमें पुरातात्विक महत्व के निर्माण, प्राचीन निर्माण, मठ-मंदिरों की भी जानकारी दी जाएगी।
  • हाई फ्लड लेवल (एफएचएल) का एरिया को जीआईएस सर्वे के जरिए चिन्हित किया जाएगा।
  • जिलों के आधार पर नर्मदा नदी के प्रमुख घाटों (कच्चे और पक्के घाट) पर गहराई की रिपोर्ट, प्रदूषण की स्थिति, मिट्टी के प्रकार आदि का सर्वे होगा।
  • पथरीले, मैदानी, दलदली, मिट्टी, रेतीले जैसे श्रेणियों में घाटों को वर्गीकरण किया जाएगा।
  • जलीय जीवों, वनस्पति, पेड़-पौधों की प्रजातियों का डाटा तैयार किया जाएगा।
  • नर्मदा नदी के वनों की स्थिति जानने के लिए वर्तमान सेटेलाइट इमेज का डाटा तैयार होगा। इसके अलावा इमेज रिपोर्ट भी तैयार की जाएगी। जो वन परिक्षेत्र के प्रतिशत पर आधारित होगी।
  • नर्मदा नदी का कंटूर सर्वे भी किया जाएगा।
  • नर्मदा नदी के कैचमेंट में प्रवासी पक्षियों से लेकर स्थानीय पक्षियों की सूची का पुनरीक्षण रिपोर्ट तैयार होगी।
  • नर्मदा के दोनों ही तटों के बसे ग्रामीण और शहरी क्षेत्र की जनसंख्या व विस्तार का खाका तैयार होगा। सीवेज प्रबंधन और किए गए उपायों, उपकरणों का भी खाका भी तैयार किया जाएगा।
  • संस्थानों (निजी व सरकारी), वैज्ञानिकों, एनजीओ समेत अन्य रिसर्च रिपोर्ट का अध्ययन भी सरकार कराएगी।
  • नर्मदा प्रदूषण और पर्यावरणीय परिवर्तन संबंधित शोध भी होंगे।

पांच माह पहले रियल टाइम मॉनिटरिंग का प्रोजेक्ट किया था तैयार

पर्यावरण विभाग ने पांच माह पहले नर्मदा नदी के प्रदूषण की रियल टाइम मॉनिटरिंग के लिए एक प्रोजेक्ट तैयार किया था। प्रोजेक्ट में चिन्हित घाटों को शामिल किया गया। इसमें ककराना घाट (अलीराजपुर), राजघाट (बड़वानी), धरमपुरी (धार), मंडलेश्वर और ओंकारेश्वर, नेमावर (देवास), शाहगंज (सीहोर), बरमान घाट (नरसिंहपुर), ग्वारीघाट (जबलपुर), डिंडौरी, मंडला और अमरकंटक को शामिल किया गया था। यहां रियल टाइम वॉटर क्वालिटी मॉनिटरिंग सिस्टम लगाए जाने हैं। सेंसर और फ्लोटिंग सिस्टम से जल प्रदूषण पर अत्याधुनिक तकनीक से नजर रखी जाएगी। प्रदूषण की स्थिति को सार्वजनिक करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक डिस्प्ले बोर्ड में ऑक्सीजन, सीओडी, बीओडी, पीएच लेवल की स्थिति और तय मानकों की जानकारी भी दी जानी है।

गांव-गांव में नर्मदा में मिल रहे सीवेज को रोकने पर होगा जोर

पर्यावरण विभाग के अधिकारियों ने बताया कि नर्मदा नदी के तट पर लगे बड़े शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) को लेकर कई महत्वपूर्ण कदम सरकार ने उठाएं हैं। सीवेज का पानी नर्मदा में सीधे तौर पर न मिले इसके लिए संबंधित स्थानीय प्रशासन की जिम्मेदारियां भी तय हैं। लेकिन गांवों या छोटे कस्बों में सीवेज प्रबंधन को सख्ती से लागू कराने की दिशा में काम किया जाएगा। नर्मदा नदी तट पर कई ऐसे स्थान हैं यहां रहवासी क्षेत्रों से दूर सीवेज सीधे तौर पर मिलता है।

नर्मदा की सहायक नदियों को लेकर चिंतित सरकार

नर्मदा नदी के प्रवाह के लिए जरूरी प्रमुख रूप से 41 सहायक नदियां बताई जाती हैं। इसके अलावा ऐसी भी कई छोटी नदियां, झरने, उप सहायक नदियां सैकड़ों की संख्या में हैं जिनका विलय नर्मदा में होता है। आश्चर्य इस बात का है कि इनके संरक्षण के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि अब संरक्षण के लिए काम किया जाएगा। सेटेलाइट एक्टिविटी सिस्टम के जरिए नर्मदा में मिलने वाली तमाम छोटी-बड़ी नदियों या नदी नुमा जलधारा को चिन्हित किया जाए। स्थानीय स्तर पर संरक्षित करने के साथ पुनर्जीवित करने के लिए पहल का खाका तैयार किया गया है। जागरूकता अभियान के संचालन के साथ समाज सेवी संस्थाओं की मदद ली जाएगी। बता दें कि नर्मदा कि सहायक नदियों में तवा, शेर, शक्कर, मान, हिरन, कानर, बरना, तिंदोली, बनास समेत अन्य नदियों का नाम शामिल है।

प्रदेश की प्रमुख नदियों के संरक्षण का होगा काम

अधिकारियों ने बताया कि नर्मदा नदी के इस प्रोजेक्ट के आधार पर अन्य नदियों का भी संरक्षण किया जाएगा। लिहाजा इसे पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में भी लिया जा रहा है। अन्य नदियों का संरक्षण भी चरणबद्ध तरीके से होगा। चंबल, क्षिप्रा नदी, खान नदी, काली सिंध, तवा समेत अन्य नदियों को लेकर प्रोजेक्टों पर काम किया जा रहा है। बता दें कि मध्यप्रदेश में पार्वती, सोन, बेतवा, तवा, बेनगंगा, कालीसिंध, ताप्ती, शक्कर, शेर, हिरन, चंबल, क्षिप्रा नदी, खान नदी समेत अन्य प्रमुख नदियां हैं।

यह विभाग नर्मदा संरक्षण के लिए संयुक्त रूप से करेंगे काम

पर्यावरण विभाग के अधिकारियों ने बताया कि प्रोजेक्ट में अलग-अलग विभागों की जिम्मेदारी होगी। प्रमुख रूप से प्रोजेक्ट पर वन विभाग, नगरीय विकास एवं आवास विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, राजस्व विभाग, स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी, पुरातत्व विभाग काम करेंगे। जनअभियान परिषद और एनजीओ की भी मदद ली जाएगी।

हर स्तर संरक्षण के लिए होगी कवायद- पर्यावरण मंत्री

पर्यावरण मंत्री हरदीप सिंह डंग ने दैनिक भास्कर को बताया कि नर्मदा नदी के संरक्षण के लिए हर स्तर पर प्लान तैयार किया गया है। रियल टाइम मॉनिटरिंग से लेकर कई बिंदुओं पर संरक्षण की कवायद की जाएगी। उन्होंने बताया कि नर्मदा संरक्षण के लिए इस प्लानिंग में कई नवाचार भी होंगे।

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