मनोज कुमार, मातादीन, मंगल पांडे, बंकिम चट्टोपाध्याय और भाईजान !

क्या कोई भारतीय क्रान्ति, शहीद, उपकार जैसी राष्ट्र‌ भक्ति की फिल्मों में अभिनय करने वाले तथा प्रमुख फिल्म निर्माता मनोज कुमार के नाम और काम से अपरिचित है? अविभाजित भारत के एबटाबाद ‌शहर में 27 जून, 1937 में उनका जन्म हुआ, 4 अप्रैल, 2025 को मुंबई में निधन। ‘है प्रीत जहाँ की रीत सदा, मैं गीत वहां के गाता हूँ। भारत का रहना हूँ, भारत की बात सुनाता हूँ। दीवानों से यह मत पूछो… कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे… जिन्दगी की न टूटे लड़ी… एक प्यार का नगमा है’ जैसे कालजयी नगमों को अपनी फिल्मों में प्रस्तुत करने वाले देश के महान् कलाकार को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और देशभक्त नागरिकों ने उनके अवसान पर श्रद्धासुमन अर्पित किये। फेसबुक तथा अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर मनोज कुमार को श्रद्धांजलियां अर्पित करने का तांता लगा रहा लेकिन भाईजान फिलिस्तीन का झंडा फहराने और वक्फ बिल का मसौदा फाड़ने में जुटे रहे।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी सेनानी, 34वीं बंगाल इन्फेंट्री के सिपाही उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के नगवा ग्राम के ब्राह्मण मंगल पांडे को अंग्रेजों ने विद्रोही बता कर 8 अप्रैल, 1857 को फांसी पर लट का के शहीद कर दिया। इसी दिन मेरठ के मूल निवासी मातादीन भंगी की भी शहादत हुई।

आनन्द‌ मठके का गीत वन्दे मातरम् भारत का राष्ट्रगीत बन गया। वन्दे मातरम् ने करोड़ों भारतीयों को आजादी की लड़ाई लड़‌ने को प्रेरित किया, सीनों में आग भरी। सन् 1896 के कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में इसे राष्ट्रगीत के रूप में प्रस्तुत किया गया। 1906 को बनारस कांग्रेस अधिवेशन में भारत माता के जयघोष के साथ वन्दे मातरम् गाया गया। इस राष्ट्रगीत के रचयिता बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय की (8 अप्रैल) पुण्यतिथि थी। हजारों लाखों लोगों ने इंटरनेट के जरिये इस महान देशप्रेमी को याद किया और भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी।

और भाईचारे, गंगा-जमुनी तहजीब का ढोल बजाने वालों में से एक ने भी न मनोज कुमार को याद किया, न मंगल पांडे को और न ही मातादीन व बंकिम चन्द्र चटोपाध्याय को। ये वक्फ बिल (संशोधित कानून) को टुकडे-टुकड़े करने और देश में गृह‌युद्ध की तैयारियों में जुटे हैं। देश के महान् सपूतों से इन्हें क्या लेना-देना इनके हीरो तो कोई और हैं। यह है कथित भाईचारे की असली तस्वीर।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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