मथुरा कोर्ट ने खारिज की श्रीकृष्ण विराजमान की याचिका, शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की थी मांग

अयोध्या राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में फैसले के बाद अब अदालत में मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह विवाद की सुनवाई की. हिंदू समूह की याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है. मथुरा की एक अदालत में हिंदू समूह ने 25 सितंबर को याचिका दायर की थी. जिसपर बुधवार को कोर्ट ने सुनवाई करते हुए इसे खारिज कर दिया.


एडवोकेट करुणेश शुक्ला ने याचिका खारिज करने के फैसले पर कहा कि उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया है. कोर्ट ने कहा है कि पर्याप्त सबूत नहीं है अब वह लोग हाईकोर्ट जाएंगे.

वहीं सरकारी वकील भगत सिंह ने कहा कि कोर्ट के सामने पर्याप्त सबूत पेश नहीं कर पाए. जो दलील उन लोगों की तरफ से दी गई थी उसके सपोर्ट में कागज पेश नहीं कर पाए.

कमलकांत उपमन्यु एडवोकेट सिविल कोर्ट मथुरा कोर्ट में सुनवाई के दौरान मौजूद थे. उन्होंने कहा कि भावनात्मक बातें ज्यादा की गई समर्थन में सबूत कम पेश किए गए. 1968 के समझौते के मुद्दे को उठाया गया, लेकिन कोर्ट संतुष्ट नहीं हो सका.

इससे पहले वादी पक्ष की आरे से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीशंकर जैन और अधिवक्ता विष्‍णु शंकर जैन ने बताया कि उन्होंने बाहरी व्यक्तियों द्वारा यहां इस मसले पर याचिका दाखिल किए जाने से संबंधित सवाल पर अदालत को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 16 एवं 20 का हवाला दिया ओर कहा कि यह हर भारतीय नागरिक का अधिकार है कि वह कहीं भी किसी भी जनपद में अपनी फरियाद कर सकता है.

उन्होंने बताया कि याचिका की सुनवाई के लिए अदालत में राम मंदिर से संबंधित मामले में न्यायालय के फैसले के पैरा 116 का हवाला दिया और कहा कि मंदिर निर्माण की संकल्पना अमिट ओर अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है. महामना मदन मोहन मालवीय आदि द्वारा ली गई यह संकल्पना मंदिर निर्माण के पश्चात भी कायम है.

उन्होंने बुधवार की सुनवाई में श्री कृष्ण जन्मस्थान और कटरा केशवदेव परिसर में भगवान कृष्ण का भव्य मंदिर बनाए जाने से संबंधित इतिहास का सिलसिलेवार ब्यौरा देते हुए कहा कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान को शाही ईदगाह प्रबंधन समिति से किसी भी प्रकार का कोई हक ही नहीं था. इसलिए उसके द्वारा किया गया कोई भी समझौता अवैध है. जिसके साथ शाही ईदगाह निर्माण के लिए कब्जाई गई भूमि पर उसका कब्जा अनधिकृत है. उन्होंने कृष्ण सखी के रूप में याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री की मांग का समर्थन करते हुए संपूर्ण भूमि का कब्जा श्रीकृष्ण विराजमान को सौंपने का अनुरोध किया.

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