मयूर शेलके का अनूठा परोपकार!

आजकल प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कोरोना की दूसरी लहर तथा पश्चिमी बंगाल के चुनावी घमासान की खबरें छाई हुई हैं। कोरोना से कैसे पूरे देश में त्राहि-त्राहि मची है और बंगाल में चुनाव जीतने के लिए जिस प्रकार हिंसा, मारकाट, बमबाजी तथा जुबानी विस्फोट एक गालीगलौज का तूफान छाया हुआ है। इस सब ने मानवीय संवेदनाओं को तार-तार कर दिया है। इस माहौल में देश का हर नागरिक आशंकित तथा कुंठित है।

ऐसे नाना द्वंदों से भरे वातावरण में सोशल मीडिया के दस-बारह सेकंड के वीडियो ने दिखा दिया है कि आपाघापी, मारपीट, लूट खसोट और हददर्जे की गैर जिम्मेदारी के युग में एक अदना सा रेलवे कर्मचारी मानव कर्तव्यबोध से प्रभावित होकर एक नन्हीं सी जान बचाने के लिए कैसे अपने प्राणों की बाजी लगा देता है।

घटना महाराष्ट्र की वांगणी रेलवे स्टेशन की है। संगीता नामक एक नेत्रहीन महिला अपने ढाई – तीन वर्ष के बच्चे का हाथ पकड़े रेलवे प्लेटफार्म पर खड़ी थी कि बच्चा मां से हाथ छुड़वा कर प्लेटफार्म के किनारे की ओर दौड़ता है और प्लेटफार्म से नीचे रेलगाड़ी की पटरी पर गिर जाता है। नेत्रहीन मां करुण कुंदन करने के अलावा कुछ कर पाने से बेबस है। प्लेटफार्म पर मां की चित्कारों और घड़घड़ाकर कर आती उद्यान एक्सप्रेस के शोर के अलावा कुछ गूंज नहीं रहा था। इस खौफ़नाक मंजर को दूर खड़े व्यक्ति ने देखा तो उसका कर्तव्यबोध जाग्रत हो उठा। एक पल खोये वह पटरी की ओर दौड़ा। उद्यान एक्सप्रेस बच्चे से चन्द मीटर की दूरी पर थी। इस शख्स ने बच्चे को उठा प्लेटफार्म पर पटका और खुद भी कूदकर प्लेटफार्म पर चढ़ गया।

एक नन्हीं जान की रक्षा करने वाला यह व्यक्ति मयूर शैलके छह मास पहले ही रेलवे की फील्ड स्टाफ में भर्ती हुआ था। अपनी जान को जोखिम में डाल उसने एक नेत्रहीन मां को जो उपहार दिया वह अनूठा, अवर्णीय है। उसके इस सुकृत्य से कहा जा सकता है कि मानवता अभी जीवित है। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने पचास हजार रुपये का इनाम देते हुए कहा कि मयूर शेलके ने जो कारनामा किया है उसके आगे हर पुरस्कार छोटा है।

परोपकार की इन अनूठी मिसालों को चिरंतर रखने के लिए यह आवश्यक है कि महामहिम राष्ट्रपति जी मयूर शेलके को किसी शुभ अवसर पर पुरस्कृत करें।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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