मीडिया की ज़िम्मेदारी!

राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं सूचना तथा प्रसारण मंत्री ने लोकतंत्र में प्रेस (मीडिया) की भूमिका को महत्वपूर्ण मानते हुए इसकी सुरक्षा एवं स्वतंत्रता पर बल दिया है। सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने भारतीय प्रेस परिषद की स्थापना के 55वें पूर्ण होने पर आयोजित समारोह में कहा कि कुछ पत्रकारों की आवाज़ दबाने की घटनाएं खेदजनक है। प्रेस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए। श्री जावड़ेकर ने यह भी कहा कि प्रेस परिषद को और अधिक अधिकार देने की मांग पर मंत्रालय समिति विचार कर रही है। सूचना प्रसारण मंत्री ने कहा कि मीडिया की स्वायत्ता एवं स्वतंत्रता के साथ उसकी ज़िम्मेदारियों का निर्धारण भी जरूरी है। उन्होंने संकेत दिया कि टीवी चैनलों की आचार संहिता निर्धारित करने पर विचार हो रहा है। कुछ चैनलों द्वारा टीआरपी में घपला करने के आरोपों की भी जांच आवश्यक है और इस तरह की तिकड़में रोकी जानी चाहिए।

प्राय: यह देखने में आ रहा है कि कुछ टीवी चैनल सनसनीखेज एवं भड़काऊ खबरों के जरिये समाज में अफरातफरी व अराजकता फैलाने में जुटे हैं। इन्हें राष्ट्रीय हितों पर प्रहार करने में भी हिचक नहीं होती। कुछ चैनल देश की सारी व्यवस्थाओं को अपने आधीन मान कर विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका का काम भी खुद ही करते दिखाई देते हैं। बिहार चुनाव में नेताओं को हीरो और जीरो बनाने का अभियान खूब चला। चुनाव के दौरान एक चैनल ने नीतीश कुमार को गुस्सा क्यों आता है, सीरियल चला कर चुनाव में चोट पहुंचाने की कोशिश की। चुनाव परिणाम आने और नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद भी उनके विरूद्ध प्रचार जारी है और एक टीवी चैनल बता रहा हैं कि ‘हवा का एक झोंका बिहार की राजनीतिक तस्वीर बदल सकता है।’

नेतागण यह तो कहते है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है किन्तु उनमें साहस नहीं है कि वे इसकी गलत एवं राष्ट्र विरोधी विचारधारा की ओर उंगली उठा सकें। इसी कमजोरी से ब्लैकमेलिंग और दादागीरी की प्रवत्ति बढ़ी है और टीवी चैनल की एंकर हंटरमास्टर की तरह खड़ी नजर आती है। लोकतंत्र के तीन स्तंब हो या चौथा स्तंभ हो, इन सभी का अंतिम एवं एकमात्र उद्देश्य लोकमंगल है। राष्ट्रीय हित को पुष्ट करना है। भारत के टुकड़े-टुकड़े करने वाले गिरोह और राष्ट्रीय ध्वज को अपमानित कर संविधान की मनमाफिक व्याख्या करके देश में अराजकता एवं गृहयुद्ध की स्तिथि पैदा करने वाले गद्दारों के एजेंडे को आगे बढ़ने में सहयोगी बनना प्रेस की आजादी का दुरुपयोग है। ऐसा मीडिया हजार फनों वाले विषधर नाग के समान है जिसे नाथना लोकतंत्र व राष्ट्रहित में जरूरी है।

गोविन्द वर्मा

संपादक ‘देहात’

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