सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एन.एस.ए.) से संबंधित एक वाद में महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। जस्टिस अहसानुद्दीन तथा जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने रामपुर (उ.प्र.) के समाजवादी पार्टी के नेता सूसुफ मलिक पर लगे एन.एस.ए. को रद्द करते हुए उन्हें जेल से तुरन्त रिहा करने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने कहा कि कर वसूली के मुद्दे पर रासुका लगाने के उत्तर प्रदेश सरकार के निर्णय से हम चकित हैं। यह रासुका का मामला नहीं है। ऐसे ही गलत कामों से सरकार पर राजनीतिक प्रतिशोध के आरोप लगते हैं। राज्य सरकार को फटकारते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि मलिक के विरुद्ध लगा रासुका सरकार को स्वतः वापस ले लेना चाहिए था।
सरकारें, चाहे वे केन्द्र की हों या राज्यों की, अक्सर रासुका के इस्तेमाल में लापरवाही और पूर्वाग्रहपूर्ण रवैये से काम लेती हैं। यदि पीड़ित ऊपरी स्तर से न्याय हासिल करने में सक्षम न हो तो वह अन्याय की चक्की में पिस सकता है। देश की सुरक्षा को हानि पहुंचाने की स्थिति में ही रासुका का प्रयोग होना चाहिये, वह भी तब जब दोषी को तुरत सींकचों के पीछे डालने की जरूरत हो।
खेद है कि अभियोजन इसे आसान कानूनी हथियार के रूप में इस्तेमाल करता है। वस्तुतः रासुका ब्रिटिश सरकार की उपज डिफेंस ऑफ इंडिया रुल (डीआईआर) का रूप है जिसे इन्दिरा गांधी ने रासुका बना दिया। आपातकाल में इस का जमकर दुरुपयोग हुआ और किन्ही मामलों में अब भी हो रहा है।
यक्ष प्रश्न यह है कि यदि यूसुफ मलिक सुप्रीम कोर्ट का द्वार खटखटाने में सक्षम न होते, तब क्या होता? क्या नाहक उन्हें जेल में न रहना पड़ता? रासुका दुरुपयोग इस लिए होता है, क्योंकि राजनेता अपनी सुविधा और स्वार्थों की प्रतिपूर्ति हेतु कानून, संविधान और राष्ट्रीय सुरक्षा की व्याख्या करते हैं।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’