माँ शाकम्भरी शक्तिपीठ !

माँ शाकम्भरी की शक्ति पीठ सहारनपुर (उ.प्र.) से 40 किलोमीटर उत्तर में शिवालिक पहाड़ियों की तलहटीं में स्थित है। मां शाकम्भरी को माता पार्वती जगत जननी जगदम्बा का रूप माना जाता है। मां के मन्दिर को महाभारत कालीन बताया जाता है। महाभारत तथा मारकण्डेय पुराण व अन्य प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में मां शाकम्भरी के पराक्रम एवं उनकी भक्ति व शक्ति का उल्लेख मिलता है। प्रमुख इतिहासकार सत्यकेतु विद्यालंकार ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि शाकम्बरी शक्ति पीठ की महिमा से प्रभावित होकर सम्राट चन्द्रगुप्त एवं उनके मंत्री आचार्य चाणक्य ने यहां प्रवास किया था। घने जंगलों क्षेत्र में स्थापित माँ शाकम्भरी के मन्दिर में आदि शंकराचार्य ने माँ की मूर्ति के दाईं ओर भ्रामरी देवी और बाईं ओर शताक्षी देवी की मूर्ति की स्थापना की थी।

मान्यता है कि पापाचार बढ़ने से पृथ्वी पर 100 वर्षों तक वर्षा नहीं हुई तो हाहाकार मच गया। तब माँ शाकम्भरी के रूप में अवतरित हुई और वर्षा होने से पृथ्वी पर चारों ओर हरियाली छा गई।

यह भी मान्यता है कि दुर्गम नामक राक्षस के आतंक से लोगों की रक्षा करने को माँ अवतरित हुईं।

अपने सेनापति भूरादेव को लेकर युद्ध में दैत्य दुर्गम को पराजित किया। माँ ने भूरादेव को अमरत्व का आशीर्वाद दिया। भूरादेव का मंदिर माँ के भवन से लगभग डेढ़ कि.मी. पहले है। श्रद्धालु भक्तजन पहले भूरादेव को सिरं नवाते हैं, फिर माँ के भवन को प्रस्थान करते हैं।

विभाजन से पूर्व यह क्षेत्र जसमोर रियासत के आधीन था। जसमोर रियासत के पूर्वजों ने माँ शाकम्भरी के मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया था और जसमोर का राज परिवार ही शक्तिपीठ की देखभाल करता था। नवरात्र में सबसे पहले राज परिवार द्वारा पूजा करने की परम्परा है।

साठ के दशक में उत्तर प्रदेश सरकार ने शक्तिपीठ और मेले के प्रबंध का अधिकार जिला परिषद (जिला पंचायत) को दे दिया। नवरात्र तथा होली पर शाकम्भरी शक्ति पीठ पर विशाल मेले लगते है जिनमें हरियाणा, पाश्चमी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों से आने वाले लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं।

माँ का प्रमुख प्रसाद पहाड़ियों पर उत्पन्न होने वाली सराल माना जाता था जो अधाधुंध खोदे जाने के कारण अब लुप्त हो चुका है। अब से 50 वर्ष पूर्व तक माँ को सराल का ही प्रसाद चढ़ता था।

कुछ समय पूर्व तक बेहट से भूरादेव तक का मार्ग टूटा-फूटा, गड्ढों से भरा था। अब सड़क पक्की व गड्ढे रहित हो गई है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए भूरादेव तक 4 लेन सड़क बनाने की योजना स्वीकृत हो चुकी है।

चूंकि शक्तिपीठ शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में स्थित है। बरसात में अचानक खोल से बरसाती पानी व छोटे-बड़े पत्थर बड़े वेग से नीचे आते हैं। कभी कभी भवन के सामने लगी दुकानें व वाहन तक आकास्मिक बाढ़ में बह जाते हैं। इसलिए भक्तों को शक्तिपीठ के दर्शन वर्षाकाल से पूर्व करने का परामर्श दिया जाता है।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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