श्रीमान पटवारी जी महोदय !

इन दिनों किसान केंद्र सरकार द्वारा लागू किये गए कानूनों को जड़ मूल से खत्म किए जाने की मांग पर दिल्ली को घेरे हुए हैं। फिलहाल कहा नहीं जा सकता कि आंदोलन का क्या परिणाम निकलेगा। वार्ता के शुरुआती दौर में किसानों का रुख अड़ियल नहीं था, सरकार भी सकारात्मक थी। किसान नए कृषि कानून के प्रावधानों को बिंदुवार सरकार के समक्ष रख रहे थे और इन पर सहमति बन रही थी। किसानों ने एक बड़ी संभावित परेशानी की ओर ध्यान दिलाया कि जिंसो की खरीद या न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर यदि विवाद होता है तो किसान तहसीलदार या एसडीएम के न्यायालय में ही जाएगा, किसी अन्य अदालत में नहीं जा सकता।

निश्चित रूप से यह प्रावधान असंगत एवं बेहूदा है जिसका किसान ठीक ही विरोध कर रहे है। तहसीलदार और एसडीएम न्यायिक प्रक्रिया के अंग नहीं हैं, वे सड़ीगली प्रशासनिक व्यवस्था के पुर्जे है जो खुद को लोकसेवक नहीं अपितु बरतानिया शासन के समय की भांति स्वयं को ‘हाकिम’ मालिक या सरकार समझते हैं। इन सरकारी पुर्जों की अदालतें कैसे काम करती हैं और किसान को न्याय हासिल करने के लिए कितनी परेशानी होती है और क्या-क्या करना होता है यह भुक्तभोगी किसान बखूबी जानता है। अतः किसानों की मांग पूरी तरह जायज़ है कि विवाद को तहसीलदार या एसडीएम कोर्ट के जंजाल से दूर रखा जाए।

तहसीलदार, परगना अधिकारी या उप जिलाधिकारी अथवा एसडीएम राजस्व विभाग से संबद्ध हैं जिसमे सबसे छोटा या बुनियादी कर्मचारी लेखपाल होता है। पहले वे पटवारी कहलाते थे। ब्रिटिश शासनकाल से ही पटवारी राजस्व विभाग का आधार रहा है। पटवारी की रिपोर्ट पर नायब तहसीलदार, तहसीलदार, एसडीएम, डीएम, कमिश्नर, मुख्य सचिव और राजस्व परिषद काम करती है। चौधरी चरण सिंह ने भले ही पटवारी पद को खत्मकर लेखपाल पद सृजित किया हो किंतु इनकी कार गुजारियों से आक्रांत किसान इन्हें सबसे बड़ा हाकिम मानता है।

जब किसान दिल्ली को घेरे पड़े हैं, तभी 3 दिसंबर 2020 को बागपत देहात भाजपा मंडल के अध्यक्ष ओमवीर सिंह जाति प्रमाण पत्र बनवाने तहसील पहुंचे और हल्का लेखपाल सुरेंद्र से मिले। लेखपाल ने उन्हें एक निजी कर्मचारी के पास भेजा जिसने सेवाशुल्क के नाम पर एक हजार रूपये मांगें। कहासुनी होने पर लेखपाल सुरेंद्र, उसके कर्मचारी व एक अन्य व्यक्ति ने ओमवीर सिंह को खींच कर नायब तहसीलदार के कक्ष में बंधक बना लिया और उनसे 1900 रुपए तथा मोबाइल छीन लिया। मंडल अध्यक्ष की पिटाई की खबर लगने पर भाजपा जिलाध्यक्ष सूर्यपाल गुर्जर कार्यकर्ताओं सहित तहसील पहुंचे और ओमवीर को मुक्त कराया। यह स्तिथि तहसीलों की है।

इसी दिन की एक और घटना मुजफ्फरनगर की बुढ़ाना तहसील की है। 3 दिसंबर को सभी लेखपाल काम छोड़ कर धरने पर बैठ गए। उन्होंने आरोप लगाया कि तहसीलदार मनोज कुमार सिंह सरकारी काम कराने को लेखपालों से सख्त व्यवहार करते हैं। तहसीलदार ने समझाबुझा कर धरना खत्म कराया। शुक्रताल में अरबों रूपये के भूमि घोटाले के पीछे कौन था, यह सभी जानते हैं। तहसील व तहसीलदारों की यह कार्य प्रणाली है। इनसे किसानों को न्याय मिलेगा?

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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