तमिलनाडु के कुन्नूर में हुआ सेना के हेलीकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने का हादसा राष्ट्रीय शोक का हादसा बन गया है। चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत, सेना के वरिष्ठ अधिकारियों सहित 13 लोगों की मृत्यु की दु:खद खबर से पूरा देश हिल गया है। जनरल रावत के प्रति आम भारतीय के सम्मान, प्रेम व लगाव का ही प्रमाण है कि टेलीविजन पर सब कुछ देखने सुनने के बाद भी कोई इस खबर को सच मानने को तैयार नहीं है। जनरल थिमैया और जनरल मानेकशा भी भारतीय जनता के प्रिय सैन्य अधिकारी रहे हैं, किंतु सीडीएस जनरल की बात कुछ और ही है। उनकी लोकप्रियता उनकी विलक्षण योग्यताओं एवं उत्कृष्ट देशप्रेम से जुड़ी है।
कल ही उन्होंने बिम्सटेक सदस्य देशों की आपदा प्रबंधन कमेटी में कहा था कोरोना के प्रकोप से जैविक युद्ध नीति आकार ले रही है। दस दिन पूर्व उन्होंने दूरदर्शिता से भरा बयान दिया था कि अब युद्ध परंपरागत हथियारों से नहीं बल्कि देशों में असंतोष, कलह और दंगे कराने जैसे तरीकों से दुश्मन युद्ध लड़ेगा। अतः हमें देश की आंतरिक स्थितियों पर भी निगाह रखनी होगी। अल्प समय में जनरल रावत ने भारत को सैन्य दृष्टि से सुदृढ़ बना कर इतिहास रचा है।
हमें यह लिखते हुए अपार कष्ट हो रहा है कि भारत माता का यह सपूत 138 करोड़ भारतीयों को बिलखता छोड़ गया है।
जब पूरा देश शोक सागर में डूबा है, प्रश्न है वे कौन है जो इस संकटकाल में जनरल रावत के साथ हुए हादसे पर खुशी मना रहे हैं और क्या वे दुश्मन के गुर्गों की तरह देश को खोखला करना चाहते हैं? क्या इन्हें गद्दारी के लिए छुट्टा छोड़ना देशहित में वाजिब है?
गोविंद वर्मा
संपादक देहात