कोरोना की दूसरी लहर की विकरालता से देश में विकट स्थिति बन चुकी है। इस भयावह स्थिति में हाई कोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट रोज मर्रा नये-नये आदेश जारी कर रहा है क्योंकि फरयादी की अरदास पर हुक्म जारी करना उनका काम है, यद्यपि अदालतें जानती है कि उपलब्धता से पांच-छह गुणा ऑक्सीजन आदि की मांग है और सरकार ने ऑक्सीजन तथा वैक्सीन संदूक में बंद कर उस पर ताला नहीं डाला हुआ है।
आज की विषम परिस्थितियों में ये बातें होना स्वभाविक है। किंतु यक्ष प्रश्न है कि देश की आजादी के 75 वर्षों के दौरान किसी भी सरकार ने आम आदमी तक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवायें पहुंचाने के लिए कारगर स्वास्थ्य नीति बनाकर उस पर अमल क्यूं नहीं किया?
यह स्वीकार करना होगा कि देश में कारगर तथा सक्षम स्वास्थ्य नीति तथा उसके क्रियान्वयन का इरादा और हौसला ना होने के कारण जनसाधारण को चिकित्सा सेवायें उपलब्ध नहीं हैं। सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों और बड़े चिकित्सालयों की पतली हालत से कौन परिचित नहीं है? निजी अस्पताल व प्राइवेट डॉक्टरों की मोटी फीस व टेस्ट के मोटे खर्चें सामान्य मरीज के तीमारदारों की जान निकाल देते हैं। उद्योगपतियों और नेताओं ने कारखानों की भांति मेडिकल कॉलेज तथा अस्पताल खोल लिए हैं जो धन बटोरने के अड्डे बने हुए हैं। कुछ लोग तो परेशान व खिन्न होकर इन्हें शिफ़ाख़ाना नहीं बल्कि जिबहख़ाना कहने लगते हैं। हमारी चिकित्सा व्यवस्था में खामियां ही खामियां है किन्तु उन्हें गिनाने का यह मौका नहीं है।
वर्तमान परिस्थितियों में हमारा सरकार से आग्रह है कि वह देश के स्वास्थ विशेषज्ञों एवं उच्च श्रेणी के चिकित्सकों के परामर्श से अल्पकालीन और दीर्घकालीन स्वास्थ्य नीति बनाये। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य नीति को केंद्र एवं राज्यों की संयुक्त उत्तरदायित्व के अधीन रखा जाए। यह नहीं होना चाहिए कि केंद्र ऑक्सीजन, वैक्सीन व दवाइयां उपलब्ध कराता रहे और राज्य सरकारें ऑक्सीजन व दवाओं की कालाबाजारी, मरीजों की लूट खसोट तथा संवेदनशील व्यवहार की ओर से आंखें मूंद कर केंद्र सरकार के विरुद्ध प्रेस कॉन्फ्रेंस करते रहे, अदालतों के दरवाजे खड़खड़ाने में ही कर्तव्यों की इतिश्री समझें। केंद्र तथा राज्य सरकारों को चिकित्सा सेवाओं के बजट में भारी वृद्धि करके जनता को राहत देने का लक्ष्य निर्धारित करना होगा। चिकित्सा सेवा को मोटी फीस, वेतन भत्ते, दवाओं की कमीशनखोरी से तत्काल मुक्त करना अति आवश्यक है। चिकित्सा का एक माननीय पक्ष भी है। यह मानना कि आज हकीम अजमल खां और डॉ. बी.सी रॉय जैसे इंसानी फरिश्ते नहीं है किंतु जो चिकित्सक एवं स्टाफ मानवीय संवेदना से अभिभूत होकर सेवा में लगा हो, समाज व सरकार उनका विशेष सम्मान करें।
गोविंद वर्मा
संपादक देहात