इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की नकारात्मकता !

टी.आर.पी बढ़ाने के चक्कर मे टी.वी. चैनल पहले अदानी-अदानी रट रहे थे, अब अतीक-अतीक चिल्लाने में जुटे हैं। यह खेल वर्षों से जारी है। जो एंकर तिल का ताड़ बनाने में जिनता माहिर होगा, चैनलों के मालिक उसे उतना ही अधिक वेतन देंगे, भले ही वह दारु में टुन होकर कैमरे पर क्यों न आये। एक दुर्दान्त माफिया यदि पेशाब करने बैठ जाता है, तो चैनलों के कैमरे उस पर आकर टिक जाते हैं। यह लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले मीडिया की नीचता की पराकाष्टा है।

लेकिन देश की प्रगति, उत्थान, सबल भारत निर्माण में जो सकारात्म परिवर्तन हो रहे हैं, उस ओर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने आँखें मूंदी हुई है। उदाहरण के लिये केन्द्र सरकार ने 2020 में नई शिक्षा नीति बनाई, इस राष्ट्रीय महत्व के बुनियादी मुद्दे पर किसी चैनल ने कोई धारावाहिक कार्यक्रम नहीं चलाया, कोई कुरुक्षेत्र नहीं हुआ, कोई दंगल नहीं हुआ, कोई बहस-मुबाहिसा नहीं हुआ। डॉ. भीमराव आंबेडकर, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, आचार्य सीताराम चतुर्वेदी (महामना मदन मोहन मालवीय के सचिव), डॉ. रामनोहर लोहिया, बलराज मधोक ने भारतीय परम्पराओं और परिस्थितियों के अनुकूल शिक्षा नीति बनाने का सुझाव दिया था। खुद महात्मा गांधी ने बुनियादी तालीम का प्रारूप प्रस्तुत किया था।

केन्द्र सरकार की नई शिक्षा नीति गुणात्मक परिवर्तन‌ लाने वाली है। इसमें शिक्षार्थी पर बस्ते का बोझ घटाने का प्रावधान है। इंजीनियरिंग व मेडिकल की शिक्षा अंगरेजी के साथ-साथ तेरह क्षेत्रीय भाषाओं और राजभाषा हिन्दी में भी दी जाएगी। सरकार अगले सत्र से कौशल विकास का विषय 6ठी कक्षा में अनिवार्य करेगी 11वीं, 12वीं कक्षाओं में कौशल विकास शिक्षा अनिवार्य करेगी। निश्चित रूप में शिक्षार्थियों के साथ ही राष्ट्र के विकास एवं दक्षता में इसका अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।

यह प्रसन्नता की बात है कि प्रिंट मीडिया यानी समाचार पत्र टी.वी चैनलों के उलट आज भी सकारात्म विषयों व उपलब्धियों व समाज के कल्याण से जुड़े मुद्दों पर लिखते, छापते हैं, यधपि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हाउसों की भाँति बड़े प्रकाशन समूहों ने अखबारों को भी एक ‘प्रोडक्ट’ बना दिया है।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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