आधुनिक भारत के निर्माता और विश्व में गुटनिरपेक्ष नीति के प्रवर्तक पं. जवाहरलाल नेहरु की आज 57वीं पुण्यतिथि है। देश के विभाजन के मृत्यु पर्यन्त (27 मई 1964) तक वे देश के प्रधानमंत्री रहे थे। देश में उनके करोड़ों चाहने वाले और बड़ी संख्या में उनके आलोचक भी थे, किंतु उनकी आलोचना नीतिगत होती थी, व्यक्तिगत नहीं। इसका कारण उनका सौम्य एवं सरल व्यवहार था। प्रधानमंत्री के रूप में उन्होंने कई गलतियां की जिनका खामियाज़ा देश आज तक उठा रहा है। हिंदू-मुस्लिम जनसंख्या के आधार पर देश का विभाजन हिमालयन भूल थी। कश्मीर पर कबाइली (जो वास्तव में कबाइली के वेश में पाकिस्तानी सैनिक थे) हमले का मुद्दा जनमत संग्रह के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ ले जाना, कश्मीर को विशेष दर्जा देकर एक राष्ट्र में दो प्रधानमंत्री व दो झंडे की स्वीकृति, तिब्बत पर चीन के जबरन कब्जे का समर्थन, कमज़ोर विदेश नीति तथा कृषि प्रधान देश होने के बावजूद कारगर कृषि नीति न बना कर बड़े सरकारी कारखानों की स्थापना और देश में कोटा-परमिट-लाइसेंस प्रणाली लागू करना उनकी बड़ी गलतियां थीं। किंतु यह नहीं कहा जा सकता कि उनकी नियत में कोई खोट थी या देश और देशवासियों के हितों की वे जानबूझकर अवहेलना करते थे। किसी भी महान देशभक्त नेता की भांति ही नेहरू जी के हृदय में देश के प्रति प्यार था और वे भारत को दुनिया का एक अज़ीमुज्शान देश बनाना चाहते थे। यह उनके विराट व्यक्तित्व का चमत्कार ही था कि अनेक नीतिगत गलतियों, खामियों के बावजूद वे भारत के आमजन के चहेते नेता बने रहे।
हमें सन् 1958 में पहली बार नेहरु जी से रू-ब-रू होने का मौका तब मिला जब शिक्षा ऋषि स्वामी कल्याण देव महाराज उन्हें शुकतीर्थ (शुक्रताल) लाए थे। माताजी ने छोटे भाई को नेहरू जी की पोशाक में यानि चूड़ीदार पायजामा व शेरवानी में पिताश्री के साथ शुक्रताल भेजा था। भाषण समाप्त कर जब नेहरू जी की नज़र छोटे भाई पर पड़ी। वे सुरक्षा घेरा तोड़कर आगे बढ़े और झट से उसे गोद में उठा लिया। अपनी शेरवानी से गुलाब के फूल की कली निकालकर उसकी जेब में लगादी। मात्र एक मिनट के इस दृश्य को हम कभी नहीं भूल सकते।
हमें यह भी स्मरण है कि जब स्वामी जी ने मंच पर नेहरु जी का स्वागत ‘भारत के सम्राट’ कहकर किया तो नेहरू जी तुरन्त माइक पर आए और बोले – ‘अब भारत में कोई सम्राट नहीं है।’ स्वामी जी ने कहा कि भारतवासियों के हृदय सम्राट को संबोधित कर रहा हूं। सभा में मौजूद जनसमूह स्वामी जी के इस कथन पर देर तक तालियां बजाता रहा।
नेहरू जी की जितनी कमियां या खामियां रही है, किंतु देश के प्रति उनकी सेवाओं को इतिहास के पन्नों से मिटाया नहीं जा सकता। पुण्यतिथि पर हमारा नमन!
गोविंद वर्मा
संपादक देहात