बस, और शहादत नहीं !

दिल्ली के सत्ताधीशों को साफ़ तौर से समझ लेने की जरूरत है कि कश्मीर घाटी में पाकिस्तान ने छद्म युद्ध तेज कर दिया है। 9 जून को रियासी के शिवखोड़ी मंदिर के समीप तीर्थयात्रियों की बस पर हमला हुआ। जिसमे 9 व्यक्तियों की मृत्यु हुई। 12 और 13 जून को कठुआ में आतंकी हमले में सीआरपीएफ का एक जवान बलिदान हो गया। 26 जून को डोडा में हमारे 2 जवान बलिदान हो गए। 8 जुलाई को कठुआ जिले के बदनोता गांव में आतंकियों ने हमारे 5 जवानों को मार डाला। पाकिस्तान द्वारा भेजे गए आतंकियों ने घाटी में अघोषित युद्ध का वातावरण बनाया हुआ है। टारगेट किलिंग की वारदातों में वृद्धि के साथ सुरक्षाबलों पर हमले तेज हुए हैं। पुलवामा हमले के बाद के 5 वर्षों में हमारे 182 जवान बलिदान हुए। सेना के बहादुर जवान माँ भारती की रक्षा के लिए चौबीसों घंटे सन्नद्ध रहते हैं। उनकी जान हथेली पर रहती है। लेकिन ये जानें बहुत कीमती हैं। यह कहकर देश को नहीं बहकाया जा सकता कि शहीदों का खून व्यर्थ नहीं जायेगा। यह जुमलेबाजी अब बंद होनी चाहिए। कश्मीर घाटी में दुश्मनों के साथ सही हिसाब-किताब करने का समय आ चुका है।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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