हमने कल लिखा था कि नेता किस प्रकार गुंडे-बदमाशों, बाहुबलियों, माफियाओं का अपनी राजनीति में इस्तेमाल बड़ी बेशर्मी के साथ करते हैं भले ही वह गुंडा जिन्दा हो, जेल में हो या मारा जा चुका हो। नेताओं को राजनीति का अपराधीकरण करने की महारथ हासिल है। दुर्दान्त गुंडे की मौत पर उसे शहीद और भारत रत्न से नवाजने की बात करने वाले नेताओं की कोई शर्म-हया बाकी नहीं रह गई है। हमने यह भी लिखा था कि पाकिस्तानी एजेंट अमृतपाल की गिरफ्तारी पर भी स्वार्थी नेता राजनीतिक रोटियां सेकने से बाज नहीं आयेंगे।
शिरोमणि अकाली दल के नेता और पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के बेटे सुखबीर सिंह बादल ने कहा है कि अमृतपाल ने कानून का सम्मान करते हुए सरेंडर किया है अतः उसके साथ कानून सम्मत कार्यवाही होनी चाहिये। बात ठीक है, दोषी को कानून के अधीन ही डील किया जाना चाहिये। क्या सुखबीर सिंह इतनी जल्दी भूल गये कि अमृतपाल ने अजनाला थाने में कैसे कानून का सम्मान किया था?
सुखबीर सिंह बादल ने सरकार को कानून की याद दिलाते हुए यह भी कह दिया कि भगवन्त मान सरकार निर्दोष सिक्खों का उत्पीड़न कर रही है। यह मांग भी कर डाली कि देश विरोधी कृत्यों का आरोप लगा कर जिन सिखों को मुकदमों में फंसाया गया है, उन्हें फौरन रिहा किया जाए।
कानून की पकड़ में आने वाला शख्स इन नेताओं की निगाह में प्रशासनिक कार्यवाही शुरू होते ही अपराधी के स्थान पर सिख बन जाता है, मुसलमान बन जाता है, यादव बन जाता है, दुबे (ब्राह्मण) बन जाता है। अभी पुंछ में हमारे पांच जवान शहीद हुए। उनकी वीरगति को नजर अन्दाज कर फारुख अब्दुल्ला ने बेशर्मी से कह दिया- गलती सेना की थी। (गलती न होती तो वे रोज़ा इफ्तारी का सामान ट्रक में लेकर क्यों आते?)। फारूक ने यह भी कह दिया कि अब मुसलमानों की रगड़ाई होगी। आतंकी या उनके पनाहगारों से तहकीकात करने को ये मुसलमानों का उत्पीड़न बताते है। देवबन्द के मौलानाओं ने तो एक आतंक हितैषी सैल ही बना लिया है। उनका कहना है कि आतंकवाद के आरोप में पकड़ा गया हर व्यक्ति बेगुनाह है, उसे मुसलमान होने के नाते पकड़ा गया है।
इस षड्यंत्र से सरकार कैसे निपटे? सरकारे तो आती जाती रहती हैं। केवल भारतमाता के सच्चे सपूत ही राजनीति का अपराधीकरण करने वालों से निपट सकते हैं।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’