दिल्ली नगर निगम के मेयर चुनाव को लेकर आम आदमी पार्टी सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गई है। पार्टी ने आरोप लगाया है कि भाजपा नगर निगम में अल्पमत में होने के बाद भी असंवैधानिक तरीके से मेयर पद पर अपना अधिकार बनाए रखना चाहती है। पार्टी का आरोप है कि नियमों को ताक पर रखकर एल्डरमैन से वोट कराकर भाजपा मेयर पद का चुनाव जीतना चाहती है। वहीं, भाजपा ने आरोप लगाया है कि बहुमत होने के बाद भी आम आदमी पार्टी मेयर पद के चुनाव से भाग रही है। चूंकि, अब मेयर पद के चुनाव का मामला सर्वोच्च न्यायालय के पास पहुंच गया है, अब दिल्ली को मेयर मिलने में समय लग सकता है।
आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने गुरुवार को कहा कि उनकी पार्टी ने सर्वोच्च न्यायालय में मेयर पद के चुनाव के लिए अपील की है। उन्होंने कहा कि मार्च 2022 में ही नगर निगम पर भाजपा का शासन समाप्त हो गया है, लेकिन पहले निगमों को एक करने के नाम पर उसने सत्ता पर पकड़ बनाए रखी और अब मेयर पद का चुनाव नहीं करा रही है। सौरभ भारद्वाज ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के सामने उन्होंने दो मांगें रखी हैं। पहली मांग है कि एक निश्चित समयावधि में नगर निगम में सरकार का गठन किया जाए। दूसरी मांग है कि एल्डर मैन को मेयर पद के चुनाव में मतदान करने का अधिकार न दिया जाए। आम आदमी पार्टी का आरोप है कि भाजपा एल्डरमैन से असंवैधानिक तरीके से वोट कराना चाहती है।
आम आदमी पार्टी चुनाव से भाग रही
वहीं, भाजपा ने आम आदमी पार्टी पर मेयर पद के चुनाव से भागने का आरोप लगाया है। दिल्ली भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने कहा कि नगर निगम में बहुमत होने के बाद भी आम आदमी पार्टी मेयर पद का चुनाव नहीं होने दे रही है। पूरी राजधानी ने यह देखा है कि किस तरह छह जनवरी को मेयर पद के चुनाव के समय आम आदमी पार्टी के पार्षदों ने हंगामा किया और भाजपा नेताओं-महिलाओं के साथ अभद्रता की। पार्टी ने कहा है कि इस पूरी घटना की वीडियो उपलब्ध है और इस पूरे सबूत को अदालत के समक्ष रखा जायेगा।
सचदेवा ने कहा कि आम आदमी पार्टी को अपने पार्षदों पर भरोसा नहीं है। आम आदमी पार्टी के दल में फूट पड़ गई है और वे दूसरे दल के मेयर प्रत्याशी को वोट कर सकते हैं। इस सच्चाई को जानकर ही आम आदमी पार्टी मेयर पद का चुनाव नहीं होने दे रही है। भाजपा नेता प्रवीण शंकर कपूर ने कहा है कि दिल्ली में तीनों नगर निगम एक होने के बाद मेयर का पद मुख्यमंत्री के लगभग बराबर हो गया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि अरविंद केजरीवाल नहीं चाहते हैं कि उनकी ही पार्टी में दिल्ली में उनके समकक्ष कोई दूसरा व्यक्ति खड़ा हो जाए। यही कारण है कि अलग-अलग तरीकों से मेयर पद के चुनाव में बाधा डाली जा रही है।
अब तक तारीख घोषित नहीं
दरअसल, छह जनवरी को निगम के सदन में हुए हंगामे के बाद दिल्ली को मेयर नहीं मिल पाया। अब तक नगर निगम प्रशासन या पीठासीन अधिकारी के द्वारा मेयर पद के चुनाव के लिए नई तारीख लेने के लिए कोई पहल भी नहीं की गई है। पिछली बैठक में सभी निर्वाचित-मनोनीत सदस्यों की शपथ होने के बाद भी मेयर पद का चुनाव नहीं हो पाया। शपथ ग्रहण पूरा होने के तुरंत बाद पीठासीन अधिकारी ने सदन समाप्त होने की घोषणा कर दी। ऐसे में आम आदमी पार्टी को डर है कि ज्यादा समय लेकर उसके पार्षदों को तोड़ने की कोशिश की जा रही है जिससे चुनाव होने पर भाजपा अपना मेयर बनवा सके। यही कारण है कि उसने कोर्ट का रुख कर लिया।
इस मामले में एक पेंच यह भी था कि नये मेयर को काम करने के लिए केवल दो महीने के करीब समय मिल पा रहा था। साथ ही एक ही कार्यकाल में छह मेयर बनने का रास्ता बन रहा था, जो संवैधानिक तरीके से उचित नहीं होता। अब अदालत में कुछ समय लगने के बाद मार्च के अंत या अप्रैल के प्रारंभ में मेयर पद का चुनाव होने का रास्ता निकल सकता है और एक ही कार्यकाल में छह मेयर बनाने के असमंजस से भी बचा जा सकेगा।