कोरोना से उबरने के बाद गंध की समस्या:सूंघने की क्षमता खो चुके लोगों को गुलाब, लैवेंडर और मिंट की खुशबू से ठीक कर रहे,

तेरह साल के साहिल शाह पिछले साल नवंबर में कोरोना संक्रमित हुए थे। इसके बाद उन्हें किसी भी तरह की गंध या खुशबू आनी बंद हो गई थी। उनके पैरेंट्स इस समस्या को दूर करने के लिए न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन और ईएनटी विशेषज्ञों सहित कई डॉक्टरों से मिले। महीनों तक साहिल ऐसे ही परेशान होते रहे, पर समस्या जस की तस बनी रही।

थक हारकर परिवार ने ऐसे शख्स की मदद ली, जिनके पास इलाज की संभावना न के बराबर थी। साहिल के पिता प्रतीक शाह बताते हैं कि किसी परिचित के सुझाव पर उन्होंने न्यूयॉर्क की एक फ्रेगरेंस एक्सपर्ट सू फिलिप्स से संपर्क किया। जब शाह परिवार फिलिप्स के मैनहट्‌टन स्थित बुटीक पर पहुंचा तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे कोई डॉक्टर, वैज्ञानिक या केमिस्ट नहीं हैं, इसलिए वे उनके बच्चे को ठीक करने के लिए कोई वादा नहीं कर पाएंगी।

सूंघने की क्षमता खो चुके लोगों को ठीक करने के लिए फिलिप्स ने 18 तरह के कस्टमाइज्ड फ्लेवर तैयार किए हैं। उपचार की शुरुआत वे हल्की खुशबू जैसे गुलाब, लैवेंडर और मिंट के साथ करती हैं। फिलिप्स बताती हैं कि एक बार में खुशबू की एक ही बॉटल दी जाती है। वे लोगों को कहती हैं कि सुगंध लेने के साथ उसे दिमाग में महसूस भी करें। बहुत सारे लोग तो इसी शुरुआती चरण में ठीक हो जाते हैं। उनकी सुगंध महसूस करने की क्षमता में काफी सुधार दिखता है।

प्रतीक बताते हैं कि उनके बेटे में 25% सुधार दिख रहा है। उनका मानना है कि कुछ न होने से तो यह बेहतर ही है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट वेंकटेश मूर्ति के मुताबिक कुछ विशेष गंध यादों और भावनाओं को प्रेरित कर सकती हैं, संभवत: फिलिप्स ऐसा ही कुछ कर रही हैं।

अलग-अलग खुशबुओं का इस्तेमाल करके किसी व्यक्ति की गंध लेने की क्षमता बहाल की जा सकती है। इस प्रक्रिया में किसी तरह का नुकसान नहीं है। जर्नल ऑफ क्लिनिकल इम्यूनोलॉजी में प्रकाशित शोध में विशेषज्ञों ने दावा किया था कि इस प्रक्रिया से गंध क्षमता लौटाने में मदद मिल सकती है।

बेल्जियम: दो अलग-अलग खुशबुओं का प्रयोग, नतीजे सकारात्मक
ऐन लेरक्विन का केस अलग था। कोरोना से पहले जो महक लुभाती थी, वो दुर्गंध लगने लगी। लेरक्विन जैसे कई मरीज स्मेल ट्रेनिंग ले रहे हैं, इसमें वे आंखें बंद कर दिन में दो बार अलग-अलग गंध सूंघते हैं। इलाज कर रही डॉ. हुआर्ट कहती हैं कि ‘ध्यान लगाना जरूरी है, क्योंकि मस्तिष्क को वास्तव में उन गंधों की स्मृति को हरकत में ले आना होता है।’ लेरक्विन के मामले में देखें तो उनके दिमाग को वाकई फिर से ये सीखना होगा कि गुलाब में गुलाब जैसी गंध आती है ना कि दुर्गंध।

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