ओ दिल्ली! जवाब दे !!

हम तुझे बक्कल तारने की धमकी नहीं दे रहे हैं, तुझ से हाथ जोड़ सिर झुका कर पूछते हैं कि क्या तूने देश में कोई नयी आई.पी.सी और नया संविधान लागू कर दिया है? क्या जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म कर के कुछ विशेष लोगों को लाल किले पर राष्ट्रध्वज उतार कर कोई दूसरा झंडा लहराने और सुरक्षाकर्मियों को बीस फुट नीचे फेंकने का अधिकार दे दिया गया है? इस नये संविधान में रास्तों को जाम कर लाखों-करोड़ों लोगों को परेशान करने, हजारों कारखानों की तालाबंदी कराने, लाखों मजदूरों व कारखानेदारों की रोटी-रोज़ी छीनने, टोल प्लाजाओं, टावरों की बिजली काटने, माल व सवारी गाड़ियों की रफ्तार रोकने, बलात्कार, जिन्दा जलाने और हाथ पैर काट कर लटकाने का परमिट जारी किया गया है?

नई आई.पी.सी और नये संविधान के कारण ये अपनी अलग संसद भी चला सकते हैं तो नयी जन अदालतें भी गठित कर सकते हैं। जैसे कश्मीर में भारत का संविधान, भारत की संसद व भारत के सुप्रीम कोर्ट के कायदे-कानून लागू नहीं होते थे, वैसे ही क्या इन अति विशिष्ठजनों पर भी देश का कानून, कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के नियम लागू नहीं होते? दिल्ली, तुझे यह तो बताना ही पड़ेगा कि माजरा क्या है!

देश का आम नागरिक और करदाता यह पूछने का हक़ रखता है कि देश को इन विशेष दर्जा प्राप्त लोगों के क्रियाकलापों के कारण कितने लाख-करोड़ रूपये की आर्थिक क्षति हुई, कितने करोड़ लोग नाहक दिक व परेशान होते हैं, कितने करोड़ बस-ट्रेन-वाहन यात्रियों को परेशानी होती है और लोग बहकावे-भड़कावे में आकर कैसे देश की शान्ति व्यवस्था और सुरक्षा को क्यों पलीता लगाते हैं? दिल्ली! अगर तेरे पास जवाब नहीं है तो नये संविधान को उजागर कर ताकि पहले संविधान को गलत मान कर, पहली व्यवस्थाओं को बेकार दकियानूसी समझ कर लोग विशेष दर्जा प्राप्त लोगों को देश का कर्णधार स्वीकार कर अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी तो राहरास्त पर लाने की कोशिश करें!

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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