बिहार में विपक्षी महगठबंधन में टूट के प्रबल आसार हैं। विधानसभा के उपचुनाव में राजद द्वारा दो सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा के बाद महागठबंधन के घटक कांग्रेस अपना अलग उम्मीदवार मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की हरी झंडी मिलने के बाद राजद ने रविवार को कुशेश्वरस्थान और तारापुर के लिए प्रत्याशियों का एलान कर दिया। इस पर कांग्रेस ने आपत्ति जताई है।
कांग्रेस प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने कहा कि ये महागठबंधन के उम्मीदवार नहीं हैं। उपचुनाव में राजद ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं। कांग्रेस भी अपना प्रत्याशी उपचुनाव में उतारेगी। राजद के प्रत्याशी घोषित करने के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि महागठबंधन में टूट तय है।
राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार विधानसभा की दो सीटों तारापुर और कुशेश्वर स्थान पर हो रहे उपचुनाव के लिए रविवार को अपने उम्मीदवार के नामों की घोषणा कर दी है।राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह, राष्ट्रीय महासचिव आलोक मेहता और राज्य प्रवक्ता मृत्युंजय ने रविवार को संयुक्त रूप से संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया। इसी दौरान तारापुर तथा कुशेश्वर स्थान के लिए क्रमशः अरुण कुमार साह और गणेश भारती के नामों की घोषणा की गई।
राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू द्वारा जीती गई बिहार विधानसभा की दो सीटें तारापुर और कुशेश्वर स्थान सत्ताधारी विधायकों के निधन के कारण खाली हो गई थीं। राजग के सभी घटक दलों के नेताओं ने दो दिन पहले एकजुटता प्रदर्शित करते हुए संयुक्त रूप से अपने गठबंधन के उम्मीदवारों की घोषणा की थी जबकि पांच विपक्षी पार्टियों के महागठबंधन का नेतृत्व करने वाले राजद ने अपने दम पर पार्टी प्रत्याशियों की घोषणा की है।
पिछले साल विधानसभा चुनाव में दरभंगा जिले में पड़ने वाली आरक्षित सीट कुशेश्वर स्थान कांग्रेस के हिस्से में आईी थी और उसके उम्मीदवार 7,000 से कम मतों के अंतर से हार गए थे।
राजद पार्टी के सूत्रों ने कहा कि दोनों सीटों पर चुनाव लड़ने का फैसला विधानसभा सीटों पर महागठबंधन में शामिल कांग्रेस के निराशाजनक प्रदर्शन के कारण लिया गया है। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हिस्से में 70 सीटें थीं लेकिन उनमें से जीत सिर्फ 20 सीटों पर ही मिली थी।
पार्टी के अति पिछड़ा प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय महासचिव निखिल आनंद ने राजद पर इसी बहाने कांग्रेस को उसकी हैसियत बताने का आरोप लगाते हुए कहा, राजद पहले से ही इस बात को लेकर परेशान है कि कांग्रेस लगातार उसकी छत्रछाया से बाहर निकलने के लिए मशक्कत कर रही है। कांग्रेस द्वारा कन्हैया कुमार को पार्टी में शामिल कराना इसी रणनीति का हिस्सा है।