सेंट्रल विस्टा पर विपक्ष का अरण्य रोधन !

दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल तथा जस्टिस ज्योति सिंह ने गत सोमवार 31 मई 2021 को अति महत्वपूर्ण फैसला सुनाया।

हम पहले सेंट्रल विस्टा के विषय में आवश्यक जानकारियां देना चाहेंगे। सर्वविदित है कि अंग्रेजों ने अपने शासन में दिल्ली में गवर्नर जनरल हाउस (जो अब राष्ट्रपति भवन कहलाता है) साउथ ब्लाक, नॉर्थ ब्लॉक आदि भवनों का निर्माण कराया था। यहीं ब्रिटिश शासन काल का पार्लियामेंट हाउस (संसद भवन) भी है। बरतानिया हुकूमत में निर्मित संसद भवन काफी पुराना और जरूरियात के मुताबिक छोटा पड़ चुका है। जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तब केंद्रीय लोक कर्म विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) के इंजीनियरों ने रिपोर्ट दी थी कि वर्तमान संसद भवन तकनीकी दृष्टि से भार वहन करने योग्य नहीं रह गया है। अतः नये संसद भवन का शीघ्र निर्माण कराया जाये। तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने परियोजना पर सहमति जता दी थी। परियोजनाओं को खटाई में डालने की अभ्यस्त कांग्रेस सरकार ने सीपीडब्ल्यूडी की सिफारिशों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया।

जब नरेंद्र मोदी द्वारा पुरानी रिपोर्ट तलब की गई। यह महसूस किया गया कि नये संसद भवन के साथ दूर-दूर बिखरे केंद्रीय कार्यालयों एवं 52 मंत्रालयों की एकीकृत परियोजना तैयार की जाये, संसद से काफी दूर पर स्थित उप राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के आवास, अन्य जरूरी भवन नजदीक से नजदीक बनाये जाएं। गणतंत्र दिवस की झांकियों व बढ़ती भीड़ के मद्देनज़र राजपथ, विजयपथ का चौड़ीकरण किया जाए। केंद्रीय सचिवालय व सभी मंत्रालय भवनों के एकसाथ आने पर बहुत सुविधा होगी तथा कुछ भवन के किराये के रूप में 1000 करोड़ रूपये दिए जाने से भी छुटकारा मिलेगा।

सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट समय की आवश्यकता और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक होगा। नयी संसद भवन इस प्रकार से निर्मित किया जा रहा है कि दो सौ वर्षों तक भी छोटा न पड़े और सैकड़ों वर्षों तक सुरक्षित रहे। इस परियोजना का विरोध करते हुए राहुल गांधी ने कहा है – “नरेंद्र मोदी अपने अहंकार को पूरा करने के लिए मजदूरों को मार कर अपने लिए शीशमहल बनाना चाहते हैं।” कांग्रेस की टूलकिट में भी सेंट्रल विस्टा का जिक्र है। राष्ट्रपति को दिये गए ज्ञापन में भी सेंट्रल विस्टा पर काम रोकने की मांग की गई जिस पर सोनिया गांधी, देवगोड़ा, शरद पवार, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव आदि तमाम विपक्षी नेताओं के हस्ताक्षर हैं।

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा है – याचिका में जनहित जैसी कोई चीज नहीं है। याचिका जनहित के बजाय किसी अन्य उद्देश्य से प्रेरित है। सेंट्रल विस्टा समय की आवश्यकता है और सही परियोजना है। मजदूरों को कोरोना से मार डालने का कोई इरादा नहीं है।

दोनों याचियों को फटकार लगाते हुए उन पर एक लाख रूपये जुर्माना लगाया गया ताकि जनहित का नाम लेकर अदालत का समय बर्बाद न हो।

सेंट्रल विस्टा का विरोध इसलिए किया गया ताकि इसके श्रेय नरेंद्र मोदी को न मिल सके। कांग्रेस के नेता गुजरात सरकार द्वारा बनवाई सरदार वल्लभ भाई पटेल की भव्य ‘एकता मूर्ति’ और 9 किलोमीटर लंबी सामरिक महत्व की अटल टनल पर भी गुलगपाड़ा मचा चुकी है। यह कांग्रेस तथा विपक्षी नेताओं की संकीर्ण सोच है कि वे राष्ट्रहित की परियोजनाओं का विरोध करते रहे।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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