10,000 मकानों को हटाने का आदेश !

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए.एम खानविलकर तथा न्यायमूर्ति दिनेश महेश्वरी ने फरीदाबाद नगर निगम द्वारा अरावली वन क्षेत्र में अवैध रूप से ग्राम लक्कड़पुर-खोरी में बस्ती बसाने के विरुद्ध कड़ा आदेश पारित किया है। लक्कड़पुर-खोरी का पूरा इलाका संरक्षित वन क्षेत्र में आता है जहां जंगल या वृक्षों के अलावा कोई बसासत मान्य नहीं। इसके बावजूद भूमाफियाओं, नगर निगम के भ्रष्ट अधिकारियों तथा दलालों ने सांठगांठ कर लक्कड़पुर-खोरी में वनों को काटकर वहां मकान बनाने का रास्ता खोल दिया। धीरे-धीरे लक्कड़पुर-खोरी में 10,000 मकानों की तामीर हो गए जो पूरी तरह अवैध है।

लक्कड़पुर-खोरी के इस अवैध निर्माण पर समय-समय पर उंगलियां उठती रही और नोटिस बाज़ी होती रही। अंततः पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने अवैध निर्माण को हटाने का अंतिम आदेश दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा है कि समस्त दस हज़ार मकानों को हटाकर नगर निगम के मुख्य कार्य अधिकारी तथा हरियाणा के वन सचिव छह सप्ताह के भीतर अनुपालन की रिपोर्ट न्यायालय को प्रस्तुत करेंगे।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात पूरे देश में अवैध बस्तियों का निर्माण हुआ। महानगरों में अवैध बस्तियां कुकुरमुत्ते की भांति फैली। अवैध बस्तियां बसाने में कांग्रेसी नेताओं का प्रमुख हाथ रहा क्यूंकि 55 वर्षों तक इस पार्टी का एकछत्र राज था।

दिल्ली कांग्रेस के नेता हरकिशन लाल भगत अवैध बस्तियां के बेताज बादशाह के रूप में जाने जाते थे। उनके विषय में चर्चा होती थी कि पहले वे अवैध बस्तियां बनवाते थे फिर उन्हें चुनाव के समय वैध घोषित करवा कर बंपर वोटों से चुनाव जीतते थे। लोकसभा चुनावों में राजनीतिक दल अवैध बस्तियों को वैध घोषित कराने का वायदा करते हैं। इस खेल में भाजपा भी पीछे नहीं रही।

यह कहानी सिर्फ दिल्ली या लक्कड़पुर-खोरी की ही नहीं है। भारत का कोई शहर ऐसा नहीं जहां भूमाफियाओं और नेताओं की शह पर अवैध निर्माण या अवैध बस्तियां न बसी हों। हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट कहां-कहां तक हस्तक्षेप करेंगी ?

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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