गन्ना किसानों एवं चीनी मिलों की परेशानियों का स्थायी समाधान आवश्यक !

उत्तर प्रदेश के चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा ने लखनऊ, गोरखपुर और शाहजहांपुर में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये संबंधित अधिकारियों एवं मिल प्रबंधकों से कहा है कि मिलों का पिराई सत्र समय से आरंभ होना चाहिये तथा मिलों को पूरी क्षमता से पिराई करनी चाहिये। गन्ना मंत्री ने कहा कि जो गन्ना क्रय केंद्र घटतौली कर रहे हैं उनके विरूद्ध पुलिस में प्राथमिकी लिखा कर कानूनी कार्यवाही की जाये।

सर्व विदित है कि गन्ना एवं चीनी दोनों ही अर्थ व्यवस्था की रीढ़ है। विशेषकर पश्चिमांचल में अर्थव्यवस्था की गाड़ी का पहिया गन्ना, खण्डसारी एवं चीनी उद्योग से ही चलता है किन्तु दुर्भाग्य से लगभग पांच दशकों से गन्ना उत्पादक, गुड़, खण्डसारी तथा चीनी उद्योग संकटग्रस्त हैं। गन्ना उत्पादक हर सीजन में मूल्य निर्धारण की शिकायत करता है, समय पर भुगतान न मिलने तथा गन्ना क्रय केंद्रों पर घटतौली जैसी शिकायतें आम हैं। बड़ी विडंबना है कि क्रैश क्रॉप कहलाने के बाद भी किसान को पूरा भुगतान नहीं मिलता। कोई भी सरकार हो, उसके प्यादे समय पर भुगतान करने के वायदे करते हैं किन्तु ये आश्वासन कभी पूरे नहीं होते। खुद गन्ना मंत्री के ज़िले की चीनी मिलों पर पिछले सत्र का 346 करोड़ 29 लाख रुपये गन्ना मूल्य बकाया है। इस देनदारी में नवंबर मास के पहले पखवाड़े का 85 करोड़ 60 लाख 50 हजार रूपये और जुड़ गया है। जहां तक घटतौली की बात है, यह आम शिकायत है। अभी दो दिन पूर्व जड़वड़ क्रय केंद्र पर घटतौली को लेकर किसानों ने खूब हंगामा किया था। मंत्री जी की चेतावनी के बावजूद मिलें पेराई क्षमता का पूरा उपयोग नहीं कर रही है। थानाभवन मिल की क्रशिंग क्षमता 90 हजार क्विंटल की है जबकि मिल अभी 69 हजार की औसत क्षमता से चल रही है। शामली मिल की क्षमता 70 हजार क्विंटल की है जबकि वह मात्र 60 हजार और ऊन चीनी मिल 70 हजार के साक्षेप सिर्फ 58 हजार क्विंटल गन्ना पेराई कर रहा है। इनके अलावा मोबाइल फोन पर पर्ची भेजने की नई व्यवस्था से किसान परेशान है। पहले आम तौर पर दशहरे तक कोल्हू, केन क्रशर व चीनी मिलें चल जाती थीं। विलंब से पिराई सत्र शुरू होने के कारण किसान गेहूं की बिजाई नहीं कर पाता। गन्ना मंत्री के अनुसार नवंबर के पहले पखवाड़े में 119 में से 80 मिलों में ही पिराई आरंभ हो सकी है।

दूसरी ओर गुड़ खण्डसारी उद्योग भी दशकों से परेशान है। चीनी मिल एसोसिएशन हर वर्ष सरकार के सामने घाटा होने का रोना रोते है और सरकार से आर्थिक सुविधायें प्राप्त कर लेते हैं किन्तु फिर भी किसानों को समय से भुगतान नहीं मिलता। वी.एम सिंह जैसे नेता कृषक हित में हर वर्ष अदालतों के दरवाज़े खटखटाते हैं और भारतीय किसान यूनियन हर बरस धरना, प्रदर्शन, रास्ता जाम करते हैं मानों यह नियमित वार्षिक कार्यक्रम हो। खेती का लागत खर्च बढ़ने पर गन्ना मूल्य में पर्याप्त बढ़ोतरी न होने की समस्या अलग परेशान करती है क्योंकि उपभोक्ता का हित अलग से टकराता है।

कुल मिला कर कोई भी सरकार किसान व उद्योग की परेशानियों का स्थायी समाधान नहीं निकाल पाई। यह एक अजीब रहस्य है या यह माना जाय कि सरकार चलाने वालों के पास समस्याओं के निराकरण की योग्यता और हौसला नहीं रहा।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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