पुलिस प्रणाली में परिवर्तन की जरूरत !

पुलिस की कार्यप्रणाली को लेकर सदा से ही चर्चा या स्पष्ट शब्दों में कहें तो आलोचना होती रहती है। जस्टिस आनंद नारायण मुल्ला ने पुलिस को गुण्डों का संगठित समूह बताया था। मेरठ के एक लेखक ने तो ‘वर्दी वाला गुण्डा’ नामक उपन्यास ही लिख मारा था। बिहार के गृह मंत्री रहे रामानंद तिवारी ने सुझाव दिया था कि भारत में हुकूमत का दबदबा कायम करने के उद्देश्य से पुलिस बल एवं पुलिस मैनुअल बनाया था, जिसमें अब सुधार होना चाहिये क्योंकि देश में विदेशियों की नहीं, अपनी सरकार है। तिवारी जी कभी पुलिस में कांस्टेबल रहे थे, राजनीति में आने पर बिहार के गृह मंत्री बन गए थे। उनके जीते जी या उनके बाद पुलिस की दिशा और दशा सुधारने की कभी ईमानदारी से कोशिश नहीं हुई है।

इसका प्रमुख कारण है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में जो भी दल सत्ता में आता है वह अंग्रेजी हुकूमत के हाकिमों की तरह अपना व अपनी पार्टी का दबदबा कायम रखने के लिए पुलिस को इस्तेमाल करता है। महाराष्ट्र में परमबीर सिंह का ताजा उदाहरण सबके सामने है। कोई बताये कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में किसी कैबिनेट मंत्री या मुख्य सचिव को गारद की सलामी का क्या औचित्य है? यह सामंती व्यवस्था अब भी क्यूं लागू है?

इतना सब लिखने का आशय यह बताना है कि कोई भी सरकार पुलिस प्रणाली को लोकतांत्रिक नहीं बना पाई। हां यह जरूर है कि जब कोई राजनीतिक दल सत्ता से बाहर हो जाता है तब उसके नेता सत्ता दल पर गला फाड़-फाड़ कर आरोप लगाते हैं कि उनके राज में थाने बिकने लगे हैं, पुलिस बेलगाम हो गई है, गुंडाराज कायम हो गया हैं।

पुलिस प्रणाली में सामान्य जनता के प्रति यथोचित सुधार नहीं हो पाया है और अभी भी ब्रिटिशकालीन तानाशाही रवैया कायम है।

निकटवर्ती ग्राम शेरपुर में मनरेगा का कार्य ग्राम खाईखेड़ी निवासी सुशील नामक ठेकेदार से कराया जा रहा है जबकि नियमानुसार यह काम ग्राम के निवासियों द्वारा ही कराना चाहिये। ठेकेदार पर मनरेगा श्रमिकों से बदसलूकी व दुर्व्यवहार और समय पर पूरा भुगतान न देने के आरोप हैं। 11 सितंबर की शाम को सविता नामक दलित महिला से ठेकेदार ने मारपीट व गाली-गलौज की क्यूंकि सविता ने मनरेगा का पूरा भुगतान मांगा था। दुर्व्यवहार की शिकायत करने वह सांय 7 बजे नई मंडी कोतवाली पहुंची। सविता ने ठेकेदार सुशील के दुर्व्यवहार की सूचना जनकल्याण उपभोक्ता समिति के अध्यक्ष मनेश गुप्ता को दी तो वे भी नई मंडी कोतवाली पहुंच गये। इंस्पेक्टर अनिल कपरवाल ने आश्वासन दिया कि जांच के बाद आवश्यक कार्यवाही जरूर की जाएगी, श्री कपरवाल सविता को आश्वस्त कर किसी कार्यवश बाहर चले गए।

इसी बीच मनरेगा ठेकेदार सुशील को सविता के कोतवाली पहुंचने की भनक लगी तो वह भी कुछ लोगों को लेकर कोतवाली पहुंच गया। इंस्पेक्टर की गैर मौजूदगी में थाने में उपस्थित पुलिस जनों से ठेकेदार की कुछ बात हुई तो पुलिस ने सविता के पति मिंटू को हवालात में बैठा दिया।

वहां उपस्थित सामाजिक कार्यकर्ता मनेश गुप्ता ने पुलिस के रवैये का विरोध किया और कहा कि जांच के बिना व सविता की तहरीर लिए बिना वे कैसे उसके पति को हवालात में बंद कर सकते हैं? पुलिस अपनी हेकड़ी दिखाती रही तो मनेश गुप्ता पीड़िता सविता के साथ कोतवाली के बाहर धरने पर बैठ गए। बाद में पुलिस को अपनी गलती का अहसास हुआ तो पिंटू को छोड़ दिया गया।

मनेश गुप्ता एडवोकेट है और तीन दशकों से भी अधिक समय से गरीबों, पीड़ितों के बीच जनजागरण का कार्य व उनके हितों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह एक घटना पुलिस प्रणाली की पोल खोलती है। ऐसी सैकड़ों घटनायें प्रतिदिन देश-प्रदेश में होती हैं। हर जगह मनेश गुप्ता जैसे संघर्षशील लोग नहीं पहुंच सकते।

स्वतंत्र भारत में ब्रिटिशब्रांड की पुलिस प्रणाली लोकतंत्र पर कलंक है। केंद्र व राज्य सरकारों के संचालक अपना व्यक्तिगत स्वार्थ दरकिनार कर जनोन्मुखी पुलिस प्रणाली बनाने की ओर कदम उठायें।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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