कमीशनखोरी के शिकार-बेचारे पुल !

बिहार में 15 दिनों के भीतर 12 पुल जिस प्रकार से धड़ाधड़ गिरे हैं, उनका विवरण मीडिया में आ चुका है। निश्चित रूप से मानक के अनुरूप निर्माण सामग्री प्रयुक्त न होने और निर्माता कंपनियों व सर‌कारी इंजीनियरों की मिलीभगत के कारण बिहार के ये 12 पुल दो सप्ताह में ढह गए।

बिहार में जिस प्रकार पुल ढहते जा रहे हैं उस पर सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता ब्रजेश सिंह ने जनहित याचिका डाली है। सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई कि अदालत बिहार के सभी पुलों की संरचना व उनकी स्थिति की जाँच हेतु समिति का गठन कराये। दूसरी ओर स्वतः सावधानी बरतते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के 50 वर्ष से अधिक समय के बने पुलों की समीक्षा व सर्वे कराने का आदेश दिया है।

उत्तर प्रदेश में कभी मायावती के चहेते बांदा निवासी नसीमुद्दीन सिद्दीकी के लोकनिर्माण विभाग का मंत्री रहते एक नवनिर्मित पुल उद्घाटन से पूर्व ढह गया था। श्री सिद्दीकी को इस पुल का उद्घाटन करना था। यह 2012 की घटना है। तब मायावती और नसीमुद्दीन की बहुत छीछालेदर हुई थी।

अंग्रेजों ने भारत पर लगभग 200 वर्षों तक शासन किया लेकिन पुलों, सड़‌कों व भवनों आदि के निर्माण में उन्होंने कभी मानकों व गुणवत्ता से समझौता नहीं किया। ब्रिटिश काल के अनेक भवन व पुल नहर आदि अब भी मौजूद हैं। भीम गोड़ा (हरिद्वार) से निकली गंग नहर इसका जीता-जागता उदाहरण है।

ब्रिटिश सेना के अधिकारी प्रोबी कॉटली ने सन् 1842 में नहर की खोदाई आरंभ कराई, 8 अप्रैल 1854 को गणेश पूजा के साथ मेजर कॉटली ने पानी की निकासी के लिए बैराज के फाटक खोल दिए। गंगनहर पर बने पुल 150 वर्षों से अधिक समय से अपनी तकनीक व उच्च श्रेणी की सामग्री की अद्भुत मिसाल हैं। पिरान कलियर के समीप सोलानी नदी के ऊपर नहर का गुजरना इंजीनियरिंग के चमत्कार व कौशल का अनुपम उदाहरण है। मुजफ्फरनगर में बेलड़ा-निरगाजनी, भोपा, सठेड़ी आदि के पुल जस के तस खड़े हैं, अलबत्ता कही कही मरम्मत की गयी है।

शेरशाह सूरी द्वारा 16वीं शताब्दी में रामपुर तिराहा (मुजफ्फरनगर) के पश्चिम में बनवाया गया 52 दर्रा पुल उच्च श्रेणी की तकनिक व आला दर्जे की निर्माण सामग्री की 500 वर्ष पुरानी मिसाल है। लगभग 4 दशकों पूर्व तत्कालीन लोकनिर्माण विभाग के मंत्री विद्याभूषण ने 52 दर्रा पुल के समानांतर नये पुल की आधारशिला रखी थी किन्तु 500 वर्षों पुराना पुल मजबूती से सीना ताने खड़ा है, यद्यपि सुरक्षा की दृष्टि से उस पर यातायात रोक दिया गया है। बेशर्मी की पराकाष्ठा है कि इंजीनियर, ठेकेदार, मंत्रीगण सैकडों वर्ष पुराने इन पुलों की गुणवत्ता व श्रेष्ठता की ओर नज़र नहीं उठाते। सिर्फ देखते हैं, कमीशन कितना प्रतिशत मिलता है।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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