बिहार में हत्यारे को संरक्षण: कहाँ है पिद्दी मीडिया

दुर्दान्त अतीक-अशरफ की हत्या पर अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव, मायावती, जयन्त चौधरी, ओवैसी, ममता, प्रियंका, जयराम रमेश, महबूबा आदि तमाम वंशवादी नेता कतारबद्ध होकर योगी पर जंगलराज का आरोप मढ़ रहे हैं, यह आश्चर्यजनक नहीं क्योंकि इनकी राजनीति की दुकान लाशों पर रोटियां सेकने से चलती हैं। लालू पुत्र तेजस्वी ने जिस तरह दुर्दान्त माफिया को श्रद्धा सुमन अर्पित किये, वह भी अन अपेक्षित नहीं। ‘अतीक जी का जनाजा नहीं, यह तो कानून का जनाजा निकल रहा था।’

तेजस्वी यादव की कमेंट्री उनके सही चरित्र को प्रकट करती है? बिहार के खूखार माफिया, हत्यारे शाहबुद्दीन के जेल से निकालने पर सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ स्वागत कराने वाले यदुवंशी परिवार के सदस्य का ‘अतीक जी’ का जनाजा निकलने पर दुःखी होना स्वाभाविक है।

लेकिन स्वयं को सुशासन बाबू बता कर खुद अपनी पीठ ठोकने वाले नीतीश कुमार को क्या हुआ? सुशासन बाबू योगी के शासन को जंगल राज बताते हैं लेकिन एक नौजवान आई.ए.एस. अधिकारी के हत्यारे को जेल से रिहा करने को सन् 1894 में अंगरेजों द्वारा बनाये गए जेल मैनुअल में ही संशोधन कर दिया।

ज्ञातव्य है कि लालू यादव के चहेते बाहुबली आनन्द मोहन के समर्थकों की भीड़ ने 5 दिसम्बर 1994 को गोपालगंज के जिला अधिकारी जी. कृष्णैया की पीट-पीट कर हत्या कर दी। आनन्द‌ मोहन भीड़ का नेतृत्व कर रहा था और भीड़ को उकसा रहा था। युवा आई.ए.एस. अधिकारी के निर्जीव होने पर भी उन्हें गोली मारी गई।

निचली अदालत ने आनन्द‌ मोहन को जिला अधिकारी की लिंचिंग के अपराध में फांसी की सजा दी। 2007 में पटना हाईकोर्ट ने आनंद मोहन की फांसी की सजा बरकरार रखी। लेकिन दिल्ली में ऐसे कानूनची बैठे हैं जो हत्यारे को फांसी के तख्ते से बचा लेते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहन की फांसी की सजा, आजीवन कारावास में बदल दी। उसे जेल से पूरी तरह रिहा करने को नीतीश कुमार ने जेल मैनुअल की धारा ही खत्म कर दी जिसमें सरकारी अधिकारी/कर्मचारी की हत्या पर सजा का प्रावधान ब्रिटिशकाल से चला आ रहा था। क्या नीतीश कुमार ऐसे ही सुशासन और ऐसे ही लोकतंत्र की स्थापना का सपना दिखा कर परिवारवादी, वंशवादी, जातिवादी नेताओं का मोर्चा बनायेंगे?

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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