सम्पूर्ण समाधान दिवस की सार्थकता पर प्रश्नचिन्ह

सरकार ने आम लोगों की समस्याओं को मौके पर तेजी से हल करने के लिए तहसील दिवस तथा सम्पूर्ण समाधान दिवस की व्यवस्था बनाई हुई है। इनमें तहसील तथा जिला स्तर के अधिकारीगण तहसील परिसर में एकत्र होकर जनता के प्रार्थनापत्र अथवा शिकायतों पर विचार कर मौके पर ही इनका निस्तारण करते हैं। शासन ने यह व्यवस्था इसलिए बनाई हुई है ताकि इनसे सम्बंधित अधिकारी व कर्मचारी एक ही स्थान पर मिल जायें और उच्च अधिकारियों की देखरेख में समस्या का समाधान हो जाये।

सम्पूर्ण समाधान दिवस नाम से ऐसा प्रतीत होता है कि इससे लोगों की समस्याएँ तुरता-फुर्ती से हल हो जाती होंगी किंतु व्यह्वार रूप से ऐसा नहीं है। अभी 17 सितम्बर 2022 को सदर(मुज़फ्फरनगर) तहसील में सम्पूर्ण समाधान दिवस था। इसमें सहारनपुर मंडल के आयुक्त लोकेश एम. ,डीआईजी सुधीर कुमार सिंह शिकायतों का निस्तारण कराने आये थे। स्वभाविक ही है कि डीएम व एसएसपी भी सम्पूर्ण समाधान दिवस में उपस्थित थे। इस मौके पर 59 शिकायतें मिलीं। आपको जानकर हैरत होगी कि सम्पूर्ण समाधान के नाम पर सिर्फ एक ही शिकायत का निस्तारण हुआ ।

जनसाधारण की समस्याएँ समाधान दिवसों में कैसे निपटती हैं, इसका एक उदाहरण देखें: 2 जुलाई 2022 को बुढ़ाना तहसील में सम्पूर्ण समाधान दिवस हुआ था। इसमें जिलाधिकारी व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक भी उपस्थित थे। इस मौके पर 81 शिकायतें आई थीं। केवल एक का ही निस्तारण हो सका । जानसठ तहसील में 22 शिकायतें आईं। एक का भी निस्तारण नही हुआ। खतौली में 16 शिकायतें प्राप्त हुईं, मात्र एक का निस्तारण हुआ।

प्रत्येक तहसील दिवस व सम्पूर्ण समाधान दिवस की यहीं गत होती है। सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए कि जिस प्रयोजन से संपूर्ण समाधान का नामकरण किया गया था, क्या वास्तव में ही शिकायतों का संपूर्ण समाधान होता है? माननीय मुख्यमंत्री जी इस स्थिति पर स्वयं विचार करें और इसकी सार्थकता का आंकलन करवायें। तहसील दिवस व सम्पूर्ण समाधान दिवस के नाम पर सरकारी कार्यालयों का प्रतिदिन का कार्य भी प्रभावित होता है, इस पर शीघ्र निर्णय लेने की आवश्यकता है।

गोविन्द वर्मा

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