इंग्लैंड में राहुल का प्रलाप !

भारत की धरती पर, भारत की सड़को पर और भारत की संसद में राहुल गाँधी जो कुछ कर करते हैं, उनसे पूरा देश परिचित है। पंजाब से ट्रक में छुपा कर मंगाए गए ट्रैक्टर को दिल्ली की सड़क पर मिट्टी का तेल डालकर फूकने का ड्रामा किया, ज्योतिरादित्य सिंधिया को लक्षित कर संसद में आंख मारी, बिना अध्यक्ष की अनुमति के किसानों को सदन में श्रद्धांजलि देने को मात्र 32 सेकेंड तक खड़े रहे जबकि खुद ही दो मिनट की श्रद्धांजलि की घोषणा की थी। अपनी पार्टी के सदस्यों को उकसा कर संसद की मेजो पर चढ़ाना, रूल्स बुक उछलवाना, यहां तक कि महिला सुरक्षा कर्मियों से हाथापाई कराना इनकी फितरत में शामिल हो चूका है, भले ही लोकसभा अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट इनको फटकार लगाए। इनकी बचकानी हरकतों को कहाँ तक गिनाया जा सकता है।

देश में राहुल जो करते हैं, वह लोकतंत्र के नाम करते हैं। विपक्षी नेता के नाते उन्हें महंगाई, कानून-व्यवस्था, बेरोजगारी आदि पर आवाज उठाना उनका अधिकार है किन्तु जब भी विदेश यात्रा पर जाते हैं, भारत को एक कमजोर, गैर लोकतान्त्रिक तथा आपदाग्रस्त देश के रूप में पेश करते हैं। अमेरिका गए तो कह दिया हमारे देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए अमेरिका को आगे आना चाहिए, इटली गए तो वहां भारत की गरीबी, जर्जर अर्थव्यवस्था का रोना रोया। अब इंग्लैंड की कैंब्रिज युनिवर्सिटी की गोष्टी में कहा कि भारत की स्थिति श्रीलंका और पाकिस्तान से भी गई गुजरी है। बोले- मोदी ने सारे भारत में किरोसिन छिड़क रखा है, बस एक चिंगारी की जरूरत है। यह भी कहा कि चीन के सामने भारत की स्थिति ऐसी है जैसे रूस के सामने यूक्रेन की। राहुल ने यह कहा कि भारत राष्ट्र नहीं हैं, राज्यों का समूह है।

राहुल से अपनी पार्टी ही नहीं संभल रही है, देश की चिंता विदेश जा कर करने का क्या औचित्य है? दरअसल जिस प्रकार उन्हें कांग्रेस की दिनों दिन डूबती हालत से खीज हो रही है, वैसे ही विश्व पटल पर भारत की उभरती छवि से भी परेशानी है क्योंकि भारत की छवि सुधरने से नरेंद्र मोदी का व्यक्तित्व भी निखरता है। राहुल मोदी विरोध में अंधे हो चुके हैं। राहुल के लिए यही कहा जा सकता है- तरक्की के दौर में नफरत लिए फिरते हैं। जब एहंकार छाता है तो दर-दर भटकते हैं।

भारत विरोधी प्रचार में सिर्फ राहुल ही नहीं अनेक वामपंथी एवं पेशेवर नेता भी शामिल हैं। गोष्टी में उनके साथ सलमान खुर्शीद भी हैं जिन्होंने कभी पाकिस्तान जाकर बयान दिया था कि इंडो-पाक दोस्ती नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते मुमकिन नहीं है। गोष्ठी में तेजस्वी यादव, सीताराम येचुरी तथा अन्य नेता भी हैं जो राष्टवाद तथा भारतीय संस्कृति के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं। जिस प्रकार कृषि कानून विरोधी आंदोलन में इन लोगो ने पश्चिमी देशों की भारत विरोधी मीडिया और एनजीओ चलाने वालों, नाचने वाली का साथ लिया था, वैसे ही आज नई राजनीति के तहत विदेशों में भारत विरोधी प्रचार का अभियान छेड़ दिया है।

गोविंद वर्मा
संपादक देहात

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