यदि राजीव गांधी श्रीलंका के तमिल-सिंहली विवाद में न कूदे होते और शांति सेना के नाम पर भारतीय फौज श्रीलंका न भेजी होती तो वे आज 77 वर्ष के होते। 21वीं सदी के भारत की संरचना को राजीव गांधी ने राजनीतिक जड़ता को खत्म कर जो क्रांतिकारी कदम उठाये थे, उनसे भारत का नक्शा ही पलट जाता।
उन्होंने आर्थिक क्रांति लाने, संचार क्रांति आरंभ करने और पंचायती राज व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए जो ऐतिहासिक कदम उठाये, उनका सुफल भारत को आज प्राप्त हो रहा है।
मतदान की न्यूनतम सीमा 22 से घटाकर 18 वर्ष करने, कर्मचारियों पर अनावश्यक कार्यभार घटाने को सप्ताह में दो दिन अवकाश देने, आयकर, कॉरपोरेट कर, एक्साइज ड्यूटी घटाने जैसे कदम उठा कर उन्होंने पूंजी निवेश को प्रोत्साहन दिया। नवोदय विद्यालयों की स्थापना का श्रेय भी उन्हीं को जाता है।
बोफोर्स की दलाली प्रकरण ने उनकी सभी उपलब्धियों पर पानी फेर दिया यद्यपि वे नेक, रहमदिल और स्पष्टभाषी इंसान थे। यह हौसला राजीव गांधी में ही था कि उन्होंने स्वीकार किया कि विकास के लिए दिये गए 1 रूपये का 15 वां हिस्सा ही कामों में लगता है।
राजीव गांधी इस स्थिति को ईमानदारी के साथ बदलना चाहते थे, किंतु नियति को यह मंजूर नहीं था। वस्तुतः उन्हें सत्ता के गलियारों में लटके कुछ चमगादड़ों ने घेर लिया था। शाहबानो केस में आरिफ मोहम्मद खां ने राजीव गांधी को सही रास्ता दिखाने की हरचंद कोशिश की लेकिन इन लोगों ने उन्हें जबरन सेक्यूलरवाद का मुखौटा पहनाया और आरिफ़ साहब जैसे प्रगतिशील नेता का कांग्रेस से बनवास करा दिया। उनके बाद कांग्रेस की स्थिति दिनों दिन गिरती चली गई और अस्तित्व बचाने के लिए कभी सपा से, कभी बसपा से, कभी मुस्लिम लीग और कभी शिवसेना जैसी क्षेत्रीय, जातिवादी सांप्रदायिक पार्टियों से हाथ मिलाने को मजबूर होना पड़ रहा है।
राजीव गांधी जैसे प्रतिभावान व्यक्ति का लिट्टे आतंकियों का शिकार बनना राष्ट्रीय त्रासदी थी। अपने अल्प प्रधानमंत्रित्वकाल में देश को आगे बढ़ाने में राजीव गांधी ने जो कार्य किये वे मील का पत्थर साबित हो रहे हैं।
77वीं जयंती पर हम उन्हें स्नेहपूर्वक स्मरण करते हैं।
गोविंद वर्मा
संपादक देहात