रामदूत अतुलित बलधामा!

भगवान् श्रीराम की भांति केसरी नन्दन हनुमान करोड़ों भारतीयों के मनों में बसे हुए हैं। श्रीराम ने इन्हें भरत के समान अपना भाई माना और माता सीता ने अमृत्व प्रदान किया। तभी इनका एकनाम रामेष्ट भी है। जिस प्रकार सर्व प्रथम श्रीगणेश को पूजे बिना कोई धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता, उसी प्रकार श्रीराम की आराधना बजरंगबली को ध्याये बिना पूर्ण नहीं होती।

जब मैं किशोर अवस्था में प्रवेश कर रहा था, तब हनुमानजी के अ‌द्भुत कौशल, बल एवं बुद्धि तथा निष्काम सेवा की गाथा पहली बार ध्यान से सुनी। शिक्षा ऋषि स्वामी कल्याणदेव महाराज शुकदेव आश्रम में हनुमानजी की मूर्तिस्थापना के अनुष्ठान में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष अनन्तशयनम् अय्यंगार को शुकतीर्थ (शुक्रताल) लाये थे। अय्यंगार जी ने बड़े विस्तार से हनुमान जी के सद्गुणों का बखान किया। उनका सद् परामर्श मुझे अभी तक याद है कि भारत को सबल राष्ट्र बनाने के लिए युवकों को हनुमान जी के चरित्र को धारण करना चाहिये।

शुकतीर्थ में महाबली हनुमान जी की श्रीहनुमद्धाम में 72 फिट की विशालकाय प्रतिमा की स्थापना का श्रेय महामंडलेश्वर स्वामी केशवानन्द सरस्वती जी को जाता है जिन्होंने रामधारीजी महाराज एवं श्री कृष्ण भगवान के अनुरागी सुदर्शन सिंह ‘चक्र’ जी के आशीर्वाद तथा प्रेरणा और अनगिनत हनुमान भक्तों की श्रद्धा से यह जन कल्याण कार्य किया। हनुमान मूर्ति में 7 करोड़ श्रीराम नाम समाये हुए हैं जिनमें से कुछ को लिखने का सौभाग्य मुझे, मेरी पत्नी व छोटे पुत्र को भी प्राप्त हुआ।

मुझे वह चमत्कारिक घटना स्मरण है जब मूर्ति की स्थापना के लिये बनाये गए दो पिलर अचानक कीर्तन कर रहे भक्तों के पास आकर टिक गए, उनका बाल तक बांका नहीं हुआ। एक अनोखी घटना तब हुई जब ‘चक्र’ जी के गोलोक गमन के पश्चात उन्हें समाधि दी जा रही थी। उस समय आकाश से फूलों की वर्षा हुई जिसे देख सब चमत्कृत रह गए थे। भाई होतीलाल शर्मा एडवोकेट उस समय वहां उपस्थित थे।

पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा जी दिल्ली के कनाट प्लेस से आगे स्थित प्राचीन हनुमान मन्दिर में दर्शन को जाते समय तमाम लाव लश्कर और सुरक्षा कर्मियों को पीछे छोड़ सामान्य व्यक्ति की भांति लाइन में लग कर हनुमान जी को शीश नवाते थे।

बड़े भाई सत्यवीर अग्रवाल जी के सौजन्य से मुझे कोटद्वार की सिद्धपीठ में हनुमान जी की मूर्ति के दर्शन का सुअवसर मिला। उनके साथ मैंने मेरठ के बुढ़ाना गेट स्थित हनुमान मन्दिर तथा शिरडी धाम के हनुमान मंदिर में भी दर्शन किये। हनुमान भक्त सत्यवीर जी ने अपनी पत्रिका ‘कल हमारा’ का हनुमान विशेषांक प्रकाशित किया था जिसमें सभी सिद्धपीठों का विस्तार से वर्णन था। लम्बे समय तक लखनऊ पर राज करने वाले नवाबों के आधिपत्य के बावजूद अमीनाबाद, हज़रतगंज और गोमती तट पर प्राचीन हनुमान मन्दिर करोड़ों भक्तों की आस्था व भक्ति के प्रतीक बने हुए हैं।

वीर हनुमान सृष्टि पर्यन्त करोड़ों भारतीयों के प्रेरणास्रोत व आराध्य बने रहेंगे!

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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