एक पुस्तकालय की निर्मम हत्या!

मंगलवार 6 अक्टूबर 2020 को मुजफ्फरनगर के लोगों ने टाउनहॉल रोड पर बालाजी चौक के समीप हैरत अंगेज दृश्य देखा। नगर पालिका परिषद मुजफ्फरनगर का अमला जेसीबी मशीन और कुदाल व हथौड़ों के साथ नगर के एकमात्र पुस्तकालय पीस लाइब्रेरी पहुंचा और लाइब्रेरी की बिल्डिंग को बिस्मार करने में जुट गया। पुस्तकालय भवन तोड़ने वाले अमले ने न तो लाइब्रेरी की बहुमूल्य पुस्तकों को अलमारियों से निकाला, न उनकी कोई सूची बनाई, न ही फर्नीचर हटाया और किसी भूमाफिया की अवैध इमारत की भांति उसे ज़मीदोज़ शुरू कर दिया।

बाद में नगर पालिका के अधिकारियों ने बताया कि सन् 1920 में निर्मित पीस लाइब्रेरी के स्थान पर बिजनेस कॉम्प्लेक्स बनाने का प्रस्ताव पारित किया गया है अतः पुस्तकालय को तोड़कर व्यावसाइक दुकानें बनाई जाएंगी। सीधा सा मामला है- नगरपालिका चलाने वालों की नजरों में पुस्तकालय, कला, संस्कृति का कोई मोल नहीं, उन्हें सिर्फ पैसे से, आमदनी से मतलब है।

यह नगरवासियों का दुर्भाग्य है कि शहर में कोई सार्वजनिक पुस्तकालय, रीडिंग रूम, रंगमंच अथवा सांस्कृतिक केंद्र नहीं है। ब्रिटिशकाल में नगर के प्रतिष्ठित समाजसेवी परिवार ने शामली रोड पर निजी खर्च पर देवीप्रसाद रीडिंग रूम संचालित किया था जो अनेक दशकों तक चलता रहा लेकिन जब प्रशासन के सिर पर पैसा कमाने का भूत सवार हुआ तो पुरानी तहसील के साथ ही देवीप्रसाद रीडिंग रूम को भी ध्वस्त कर दिया गया। बाज़ार के एक कोने में छोटी सी जगह नया रीडिंग रूम बनाने को दे दी गई। सरवट गेट पर कुछ सेवा भावी लोगों ने जिसमें हकीम कृष्णचंद प्रमुख थे, ने रुचि लेकर एक छोटा सा वाचनालय खोला था किन्तु हकीम साहब की हत्या के बाद वह भी बंद हो गया।

महावीर चौक पर जिला पुस्तकालय के नाम शिक्षा विभाग ने जो संग्रहालय खोला था उसके कमरों में वर्षों तक जिला विद्यालय निरीक्षक की गाय का भूसा और निजी सामान भरा रहा रहता था। आज भी पुस्तकालय या वाचनालय के नाम पर इसमें कुछ नहीं हैं।

कुछ लोगों ने मुजफ्फरनगर का नाम लक्ष्मीनगर रखने की मुहीम चलाई थी। पैसा कमाने की होड़ में लगे लोग लक्ष्मी जी का ही चरण वंदन करते हैं, मां सरस्वती की ओर निहारने की इन्हें फुर्सत नहीं। नगर पालिका के संचालकों की इस मनोवृत्ति ने ही दशकों पुरानी लाइब्रेरी को बिस्मार किया है। यह ठीक है कि पालिका की आय में वृद्धि होनी चाहिए किन्तु कला एवं संस्कृति का भी समाज में स्थान होना आवश्यक है। जिन लोगों ने दशकों पहले लाइब्रेरी की स्थापना में सहयोग दिया था उनकी आत्मा लाइब्रेरी के ध्वस्तीकरण को देख कर अवश्य दुःखी हुए होगी।

हमारा पालिका अध्यक्ष एवं सभासदों से आग्रह है कि वे अपने चहेतों को प्रस्तावित बिजनेस कॉम्प्लेक्स में भले ही दुकानें आवंटित करा लें लेकिन भवन का नक्शा इस प्रकार बनाएं कि इसके भूतल में या नीचे खोदाई करके पुस्तकालय व वाचनालय का प्रावधान अवश्य करें। यदि वे ऐसा नहीं करते तो उनके माथे पर कलंक का टीका हमेशा लगा रहेगा।

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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