संघ प्रमुख भागवत बोले- सबके रास्ते अलग, लेकिन मंजिल एक, पूजा-पद्धति पर विवाद व्यर्थ

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि पूजा-पद्धति किसी धर्म का एक अंग होता है। यह किसी धर्म का संपूर्ण सत्य नहीं होता है। अंतिम सत्य हर धर्म का मूल होता है और सबको उसे प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सबको अपना रास्ता सही दिखाई पड़ता है, लेकिन यह समझना चाहिए कि इन सभी मार्गों का अंतिम लक्ष्य एक सत्य को ही प्राप्त करना होता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने शुक्रवार को इकबाल दुर्रानी द्वारा अनुवादित सामवेद के हिंदी-उर्दू संस्करण का लोकार्पण करते हुए कहा कि सनातन धर्म में आंतरिक और बाह्य दोनों प्रकार के ज्ञान के बिना ज्ञान को पूर्ण नहीं माना जाता है। वेद सूत्र वाक्य की तरह होते हैं, उनके संपूर्ण अर्थ को समझने के लिए उपनिषद जैसी अन्य रचनाओं की आवश्यकता होती है। हमें इनका अध्ययन करना चाहिए जिससे हम उनके मूल संदेशों को समझ सकें।

उन्होंने एक धार्मिक प्रसंग के सहारे कहा कि अलग-अलग रूप से उपासना करने के बाद भी सुखी रहा जा सकता है। लेकिन यह ध्यान रखना चाहिए कि सबकी उपासना का आदर करते हुए सत्य की उपासना करनी चाहिए। यही अंतिम ज्ञान का स्वरूप है।

औरंगजेब हार गया, मोदी जीत गए

डॉ. इकबाल दुर्रानी ने कहा कि दाराशिकोह को वेदों का अनुवाद करने के लिए कहा गया था, लेकिन कुछ कारणों से वे ऐसा नहीं कर पाए। लेकिन आज उन्होंने दाराशिकोह का वह अधूरा काम पूरा कर दिया। उन्होंने कहा कि इस महान कार्य में बाधा बनने वाला औरंगजेब आज हार गया और मोदी जीत गए क्योंकि उनके कार्यकाल में आज वह स्वप्न पूरा हो गया।

उन्होंने कहा कि सामवेद सार्वकालिक सत्य है, यह रूहानी संदेश है जिसे हर व्यक्ति तक पहुंचाना चाहिए। वे चाहते हैं कि सामवेद को मदरसों-स्कूलों में पढ़ाया जाना चाहिए और इस पुस्तक को शिक्षा संस्थानों में प्रार्थना के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। वे इसके लिए हर राज्य में जाएंगे।

उन्होंने कहा कि लोग अकारण एक दूसरे से नफरत कर रहे हैं, ऐसे में सामवेद के प्रेम संदेश और शाश्वत सत्य को लोगों तक पहुंचाना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस तरह महिलाओं के रंग अलग-अलग होते है, लेकिन उन सबके दूध का रंग सफेद होता है, उसी तरह सनातन सबका मूल है और इसे समझने-अपनाने की आवश्यकता है।

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