दिशा और दशा बदलने का हौसला था संजय गाँधी में !

आज कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री दीपक कुमार का श्रद्धांजलि सन्देश फेसबुक पर पढ़ा जो कांग्रेस के ऊर्जावान युवा नेता संजय गाँधी के प्रति लिखा गया था।

वाकई समय पंख लगा कर उड़ता है। 42 बरस कब बीत गए, पता ही नहीं चला। मैं पत्रकार साथी ठाकुर दास चंचल जी के साथ उनसे मिलने दिल्ली कांग्रेस कार्यालय पहुंचा हुआ था। बताया गया कि चंद मिनटों में आने वाले हैं। अंबिका सोनी के साथ आये तो कार्यकर्ताओं ने घेर लिया। फोटोसेशन शुरू हो गया। भाई चंचल जी ने भी साथ में फोटो खिचवाया। पता नहीं वह फोटो उन्हें मिला या नहीं। मेरी सिर्फ दो मिनट बात हुई। आने का मंतव्य बताया। कार्यालय के एक सज्जन को बुला कर कहा- इनकी बात सुनिए।

तब कांग्रेस में संजय गाँधी का दबदबा था। एक तरह से वे ही कांग्रेस थे। जब विद्याभूषण जी के आमंत्रण पर मुज़फ्फरनगर आये तो बड़े-बड़े कांग्रेस नेताओं ने स्वागत में पलकपांवडे बिछा दिए थे। आज श्रद्धांजलि देने सिर्फ दीपक कुमार ही सामने आये। यही तो दुनिया है। संजय गाँधी के विषय में अनेक चर्चाएं, कथायें व अफवाहें प्रचिलित थीं। सच या झूठ अथवा सही-गलत का आकलन करने का अब औचित्य क्या है! किन्तु यह ध्रुव सत्य है कि संजय गाँधी राजनीति तथा सिस्टम की दिशा और दशा बदलने की तड़प और हौसला रखते थे। इस रास्ते पर वे खुल कर चले भी। यथास्थितिवाद पर प्रहार कर आगे बढ़ना संजय गाँधी का लक्ष्य था। घाघ नेताओं की तरह मुखौटा नहीं लगाते थे। जो मन में होता, वही जुबान पर और कर्म में होता। छलावे की राजनीति से दूर रहने वाला और देश के लिए कुछ कर गुजरे की लालसा रखने वाला युवा नेता अकस्मात चला गया जिसकी पीड़ा करोड़ों भारतीयों को हुई। संजय गाँधी का इस प्रकार अचानक चला जाना देश का दुर्भाग्य था। हमारी विनम्र श्रद्धांजलि !

गोविन्द वर्मा
संपादक ‘देहात’

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