श्रद्धासुमनः जाने वाले फिर नहीं आते, उनकी याद आती है !

आज मुजफ्फरनगर का नाम हिन्दी पत्रकारिता जगत में उज्ज्वल कर रहे प्रखर पत्रकार भाई हर्ष कुमार के पिताश्री दिवंगत जयपाल सिंह की आरष्टि में श्रद्धासुमन अर्पित करने गांधी कॉलोनी गया। बाबूजी के व्यापक संपर्क तथा उनके प्रति सम्मान की भावना रखने वाले लोगों की बड़ी उपस्थिति थी।

सांसारिक उलझनों के चलते मेरा बाबूजी से संपर्क टू‌टा हु‌आ था किन्तु किशोरावस्था में ही उनके आकर्षक व्यक्तित्व से प्रभावित था। वस्तुतः पिताश्री राजरूप सिंह वर्मा (संस्थापक संपाद‌क ‘देहात’) के साथ बाबूजी से अनेक बार मिलना हुआ। चेहरे पर हर समय गुलाब के फूल जैसी मुस्कान, स्नेह एवं सम्मान की मानवीय गुणों से लबरेज़ व्यक्तित्व और ग्रामीण भाइयों तथा किसानों के प्रति उनकी सेवा भावना अद्धतीय थी। लगता था कि उन्होंने कृषक सेवा हेतु ही गन्ना विभाग में तैनाती ली थी। गन्ना, गन्ना उत्पादक, सहकारी गन्ना समिति, गन्ना विकास परिषद, चीनी मिलें, इन सबकी उन्हें विषद जानकारी रहती थी। यदि कहें कि वे डीसीओ ऑफिस के मास्टर की थे, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। इन सबसे ऊपर वे नेक और हरदिल अजीज इंसान थे। बाबूजी जयपाल सिंह का जाना भाई हर्ष कुमार तथा परिजनों व समाज की बड़ी क्षति है। उनकी आत्मा को शत शत नमन।

और डॉ. शशि जी का चले जाना !

गांधी कॉलोनी से लौटा तो शाम को आगरा से छोटे भाई राजगोपाल का फोन आया कि डॉ. श्याम सिंह शशि नहीं रहे। सुन कर धक्का लगना स्वाभाविक था। पांच दशकों के कालखंड की सारी स्मृतियां दृष्टिपटल पर छा गईं। मुझे मालूम था कि वे अस्वस्थ चल रहे हैं, 90 को पार कर चुके हैं। उनके जीवट तथा सक्रियता को देखते हुए यह अनुमान न था कि अचानक हमें छोड़कर चले जाएंगे।

फिर आर.पी. तोमर (देहात के पूर्व प्रबंध संपादक) का फोन आया बताया कि एक मास पूर्व ही उनका इंटरव्यू लिया था। ऐसा नहीं लगा कि इतनी जल्दी चले जाएंगे। रात को ओ.पी.पाल जी का रोहतक से फोन आया। मेरी तरह ओ.पी. को भी निहायत अफसोस था कि वह डॉक्टर साहब से बहुत दिनों से नहीं मिल पाया।

डॉक्टर साहब से फोन पर जब भी बात होती, वे ओ.पी का ज़िक्र जरूर करते। पूछते- मिलता क्यों नहीं? मैंने बताया- अब दिल्ली में नहीं है, रोहतक चला गया है, जरूर मिलेगा।

सच यह है कि डॉ. शशि अपने हर परिचित से अगाध प्रेम और स्नेह रखते थे। उनके विषम में क्या लिखें, देश विदेश में अनेक शोधार्थियों ने उन पर पीएचडी की। चार हरूफों में क्या कहें- जो ज्ञान का अतल सागर हो, सैकड़ों पुस्तकें, शोध पत्र लिखे हों, अखिल विश्व की गणेश की भांति परिक्रमा कर आया हो, जिसे दुनिया के शैक्षिक, सांस्कृतिक सम्मानित कर खुद को गौरांवित महसूस करते हों, जो व्यक्ति उपलब्धियों के खजाने का मालिक होते हुए भी एक सामान्य व्यक्ति का जीवन जीता हो, अहंकार और दम्भ जिसकी परछाई से दूर भागता हो, ऐसे उदारमना व्यक्ति के लिए कोई विशेषण या उपमा हमारे पास नहीं है। मन व्यथित, उदास है। कभी शान्त चित्त होकर कुछ यादें कागज पर उकेरने की कोशिश करूंगा।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here