हिन्दी साहित्य जगत, भाषा विज्ञान, समाज विज्ञान, घुमंतू जनजातियों, आदिवासी संस्कृति तथा आदम के मनोभावों को कोरे कागज पर उकेरने व रेखांकित करने वाले डॉ. श्याम सिंह शशि 19 फरवरी, 2025 को जीवन के 89 वर्ष पूरे कर संसार से विदा हो गए। वे पड़ोसी जिले हरिद्वार के निवासी थे, भले ही अधिकांश ज़िंदगी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में गुजारी। अपनत्व की कशिश ऐसी कि लोग उनकी ओर अनायास खिंचे आते थे।
निधन की दुःखद खबर राजगोपाल सिंह वर्मा, ओ.पी.पाल, आर.पी.तोमर से मिली तो हृदय विदीर्ण हो उठा। सिर्फ यह लिखा गया- वे ज्ञान के महासागर थे, एक चलता-फिरता विश्वकोश ! फिर लेखनी स्थिर हो गई।
आज 27 फरवरी, 2025 है। मुझे वे क्षण याद आ रहे थे जब 30 वर्ष पूर्व डॉ. शशि ‘देहात भवन’ पधारे। मैंने ठाकुरदास चंचल, विजय गिरि, सुभाष जैन, ओमप्रकाश पाल आदि साथियों को सूचना दी। बातचीत का स्तर स्थानीय हद बंदियों से बहुत ऊपर था। कुछ समझे, कुछ नहीं समझ पाये। तब रूड़की रोड, जिला अस्पताल से आगे सड़क के किनारे राजस्थानी बागड़िये पड़ाव डालें पड़े थे। बात खानाबदोशों पर आ टिकी। उनकी निगाह, बुल्गारिया, रोमानिया, यूगोस्लाविया, यूरोप तक के घुमंतुओं तक जा पहुंची। ज्ञान, जानकारी, खोज, अनुसंधान, गवेषणा के प्रति उनकी जिजीविषा अतल सागर के समान थी, अन्तहीन, अनन्त।
भाई ठाकुरदास चंचल को पत्रकार बंधुओं को एकजुट सम्मेलन या बैठकें करने की चाहत रहती थी। जिला मुख्यालय मुजफ्फरनगर से दूर, धुर ग्रामीण अंचल शुकतीर्थ (जहां श्रीमद् भागवत का प्राकट्य हुआ) में क्षेत्रीय पत्रकारों का सम्मेलन आयोजित हुआ था। तब डॉ. श्याम सिंह शशि भारत सरकार के प्रकाशन विभाग के निदेशक थे। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की संस्थायें, विश्व विद्यालय, साहित्यिक संगठन उन्हें अपने आयोजनों में आमंत्रित कर स्वयं को गौरान्वित महसूस करती थीं, किन्तु क्षेत्रीय पत्रकारों के शुकतीर्थ सम्मेलन में वे दौड़े चले आए और एक घंटा से अधिक समय बोलकर स्थानीय पत्रकारों का ज्ञानवर्धन किया।
एक अन्य भेंट की यादें उनकी सादगी तथा अपनत्व की गवाही देने को बेताब हैं। 20 दिसंबर 2015 की घटना है। शामली (मुजफ्फरनगर) के मूल निवासी और सार्वदेशिक प्रेस, दिल्ली के आजीवन प्रबंधक रहे, मूर्धन्य पत्रकार तथा लेखक स्व. चतुरसेन गुप्ता की स्मृति में एक स्मारिका का प्रकाशन उनके पुत्र श्री मूलचन्द जी ने कराया था। इस पुस्तक के विमोचन तथा आर्य जगत के विद्वानों के प्रवचनों का एक कार्यक्रम दीवान हॉल दिल्ली में आयोजित था।
विशिष्ठ अतिथि के रूप में डॉ. श्याम सिंह शशि भी आमंत्रित थे। निश्चित समय पर आने में उन्हें विलंब हुआ तो सभी चिन्तित हुए। आयोजक एवं श्रोतागण उनकी बेसब्री से बाट जोह रहे थे। कुछ विलंब से आये तो उन्हें मंच पर आमंत्रित किया गया किन्तु डॉ. शशि ने कुछ समय बाद मंच पर आने का संकेत दिया। फिर मेरे पास आकर बैठ गए। मैंने उन्हें असहज महसूस किया। सांसें जोर से चल रही थीं। सम्भवतः अस्वस्थ होते हुए भी आये थे। यही उनका प्यार और बड़प्पन था।
पुस्तक विमोचन और वक्तृता के पश्चात फिर मेरे पास आकर बैठ गये। बताया कि दरियागंज के जाम में कार फंस गई थी। ड्राइवर को गाड़ी में छोड़ पैदल ही दीवान हॉल तक आये, क्योंकि विलंब हो रहा था। अस्वस्थता के कारण कुछ खाया-पिया नहीं, यद्यपि मूलचंद जी ने जापानी समोसे व शानदार स्वादिष्ट भोजन का प्रबंध किया था। पीछे की कुर्सियों पर आकर बैठ गए और घंटों चर्चा हुई, राजनीति की कुटिलता, सामाजिक प्रवंचनाओं कुरीतियों, पर एक शब्द नहीं। ज्ञान के अनंत आकाश पर उड़ान भरता एक जिज्ञासु पक्षी। उनका सौम्य, सरल बाल सुलभ चेहरा फिर याद आ गया। बस। कुछ लोगों की यादें सदा के लिये मन-मस्तिष्क में रच-बस जाती हैं। इन्हें हम कभी भुला नहीं सकते। डॉ शशि भी उनमें एक थे।
गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’