मैं स्वयं को बड़ा सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे एक छोटे से शहर के छोटे से अखबार का रिपोर्टर या पत्रकार होने के बावजूद महान् व्यक्तित्व के धनी अपने समय के अति लोकप्रिय नेता चौधरी चरणसिंह के अनेक कार्यक्रमों को कवर करने का मौका मिला। उनके समीप जाने और उन्हें समझने का अवसर मिला। जब वे पं. गोविन्द वल्लभ पन्त के मंत्रिमंडल में संसदीय सचिव बने, उस कालखण्ड में चौधरी साहब की सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों का मुझे ज्ञान नहीं क्योंकि तब मेरी किशोर अवस्था थी और मैं पत्रकारिता के क्षेत्र में नहीं आया था।
बाद में बाबू सम्पूर्णानन्द और सी.बी. गुप्ता मंत्रिमंडल में उनके कृषि मंत्री नियुक्त होने पर जब मुख्यमंत्री ने कृषि मंत्रालय से गन्ना विभाग को निकाला तो मुझे गुप्ताजी का यह निर्णय बड़ा अटपटा लगा। कृषि मंत्रालय से गन्ना विभाग को निकाले जाने के पीछे बहुत बड़ा मकसद था, यह बाद में पता चला। मैंने ‘देहात’ में इस पर लेख भी लिखा था। बाद में जब वे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री बने, केन्द्र में गृहमंत्री और फिर प्रधानमंत्री बने उनके अनेक कार्यक्रमों की रिपोरर्टिंग की। जब मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़े और तमाम दुराग्रही शक्तियां उनके विरुद्धएकजुट हुईं तब भी वे विवेकशून्य नहीं हुए। उनकी और माता गायत्रीदेवी जी की अनेक सभाओं में मैंने कभी चौधरी साहब को तनावग्रस्त या निरर्थक विरोधाभासों में घिरे नहीं देखा। चाहे स्वामी कल्याणदेव महाराज द्वारा आयोजित कार्यक्रम हों, कोई राजनीतिक सभा या सामाजिक कार्यक्रम हो अथवा शहर आर्यसमाज का जलसा हो, चौधरी साहब खुल कर ईमानदारी के साथ अपने विचार रखते थे और सच्चाई के साथ अपनी बात कहते थे। उनके भाषणों में कोई दुराव-छिपाव, तंज, व्यंग्य या व्यक्तिगत आक्षेप नहीं होता था। कभी-कभी लगता था कि कोई शिक्षक कक्षा में छात्रों को संबोधित कर रहा है।
खेड़ी सूंडियान में पुलिस ज्यादतियों की जानकारी के लिए जब वे मौके पर पहुंचे तो मैं उनके साथ था। सत्तर के दशक में दिल्ली में वोट क्लब की ऐतिहासिक रैली को फोटोग्राफर भाई उपेन्द्र तलवार (जो अब कनाडा में हैं) के साथ कवर किया। रमाला चीनी मिल के उद्घाटन समरोह को कवर किया। संविद सरकार के गठन के समय उनके रिश्तेदार और प्रमुख वकील स्व. लक्ष्मणसिंह को मंत्रिमंडल में स्थान दिलाने की मांग के साथ सोशलिस्ट पार्टी के नेता पीताम्बर सिंह त्यागी को लेकर दिल्ली में चौधरी साहब से मिला। जब मुख्यमंत्री के पद पर थे, तब पिताश्री राजरूप सिंह के निमंत्रण पर हमारे आवास पर पधारे। भोजन के उपरान्त जब मैं उनके हाथ धुलवाने लगा तो बोले-गुनगुने पानी से हाथ धोने चाहियें, यह ध्यान तो बच्चों को रखना चाहिए।
चौधरी साहब स्पष्टवादी नेता थे। उनके भाषण सुन कर कभी-कभी लगता था कि उन्हें किसी महाविद्यालय में अर्थशास्त्र का प्रवक्ता होना चाहिये था या किसी समाजसुधारक संस्था के कारकुन होते। उनके मन में सदा पिछड़े, गरीब और उपेक्षित ग्राम्य समाज के उत्थान की कल्पना रहती थी। लगता है अब ग्रामीण भारत के आगे बढ़ने का समय आ गया है। समर्थ भारत का जो सपना चौधरी साहब ने देखा था, उसे पूरा करने के लिए हम सब को अपने-अपने स्तर पर प्रयास करने चाहियें। जन्मदिन पर शत शत नमन् !
गोविन्द वर्मा (संपादक देहात)