चुनाव आयोग और सरकारी मशीनरी को बख्शिये !

दिसम्बर मास के पहले सप्ताह में दो राज्यों की विधान सभाओं के आम चुनाव तथा कुछ उपचुनाव संपन्न हो कर उनके चुनाव परिणाम भी सामने आ चुके हैं।

चुनाव से पूर्व विपक्षी दलों के नेता निर्वाचन आयोग और सरकारी मशीनरी पर पक्षपात एवं चुनावी घपले का आरोप लगा रहे थे। ई.वी.एम में गड़बड़ी करने तक के आरोप लगाये गए।

इन तथाकथित गड़बड़ियों के चलते हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस बहुमत में आ गई। मैनपुरी का संसदीय उपचुनाव व खतौली का विधानसभा उप चुनाव सपा व रालोद ने अच्छे खासे बहुमत से जीत लिया। दिल्ली नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बहुमत हासिल कर लिया।

अब चुनाव जीतने वाला कोई राजनीतिक दल या नेता नहीं कह रहा है कि निर्वाचन आयोग की धांधलियों के चलते वे चुनाव जीत गए हैं। अब सभी विजयी होने पर मतदाताओं का अभार जता रहे हैं। केवल हिमाचल प्रदेश के निवर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शान्तिपूर्ण एवं निष्पक्ष मतदान संपन्न कराने के लिए निर्वाचन आयोग एवं सरकारी मशीनरी का आभार जताया है।

मतदान से पूर्व निर्वाचन आयोग अथवा सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों पर आरोप लगाने की परम्परा ठीक नहीं है। कहीं-कहीं जातिगत या व्यक्तिगत कारणों ने पक्षपात की इक्का-दुक्का घटनायें हो जाती हैं जैसे 29 नवंबर को इटावा रेलवे स्टेशन के पूछताछ केन्द्र से टिकट निरीक्षक मंशा मुंडा डिम्पल यादव के पक्ष में नारे लगवाता और प्रचार करता पकड़ा गया। इसका यह अर्थ नहीं कि सारी चुनावी मशीनरी पक्षपाती है। जिन लोगों को चुनाव कराने की जिम्मेदारी दी गई है, उन्हें व्यर्थ में लांछित करना उचित नहीं है।

गोविंद वर्मा
संपादक ‘देहात’

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