बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण को लेकर राजनीतिक घमासान तेज़ हो गया है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए उसे भाजपा के पक्ष में काम करने वाला करार दिया है।
तेजस्वी यादव ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग लोकतंत्र को कमजोर करने की दिशा में काम कर रहा है और उसके व्यवहार से ऐसा प्रतीत होता है जैसे वह अब एक स्वतंत्र संस्था नहीं, बल्कि राजनीतिक पक्षधर बन चुकी है। उन्होंने कहा, “हमने कई बार प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से आयोग से मिलने की कोशिश की, लेकिन हमें अब तक समय नहीं दिया गया। जिस राज्य में चुनाव होने वाले हैं, वहां विपक्ष को नजरअंदाज किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है।”
आयोग की निष्पक्षता पर उठाए सवाल
राजद नेता ने कहा कि उनके पिता और पार्टी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव द्वारा आयोग को लिखे गए पत्र का भी कोई जवाब नहीं मिला है। तेजस्वी ने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग सभी दलों से अलग-अलग मिलने की बात कर रहा है, जिससे स्पष्ट होता है कि वह विपक्षी एकता को कमजोर करना चाहता है। “आख़िर सभी दलों को सामूहिक रूप से मिलने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही? क्या यह भाजपा के दबाव में लिया गया फैसला नहीं है?” – उन्होंने सवाल उठाया।
तेजस्वी यादव ने यह भी कहा कि आयोग की चुप्पी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौन स्वीकृति, दोनों यह दर्शाते हैं कि सत्ताधारी दलों को अपनी संभावित हार का डर सता रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि आयोग पर्दे के पीछे से सत्ता पक्ष की मदद कर रहा है।
चुनाव आयुक्तों की भूमिका पर भी निशाना
तेजस्वी ने केंद्र की ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ नीति पर कटाक्ष करते हुए कहा कि जब एक राज्य में भी निष्पक्ष चुनाव कराने में आयोग असफल हो रहा है, तब ऐसी योजनाएं महज़ दिखावा बनकर रह गई हैं। उन्होंने तंज करते हुए कहा, “आख़िर चुनाव आयुक्त मिस्टर इंडिया क्यों बन गए हैं? क्या वे हमारे सवालों का जवाब देने से बच रहे हैं?”
राष्ट्रपति शासन की आशंका जताई
राजद नेता ने यह आशंका भी जताई कि आगामी समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में राष्ट्रपति शासन लागू कर सकते हैं और राज्य की सारी बागडोर अपने हाथ में ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि मतदाताओं के अधिकारों को छीनने की साजिश चल रही है और चुनाव आयोग अब संवाद करने से भी पीछे हट रहा है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि चुनाव आयोग प्रधानमंत्री मोदी और अन्य वरिष्ठ नेताओं के विवादास्पद भाषणों पर कभी कोई कार्रवाई नहीं करता।