बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाते हुए आशंका जताई है कि इससे राज्य के करोड़ों मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं।
ओवैसी का आरोप: इतनी जल्दी नहीं हो सकता सटीक संशोधन
ओवैसी ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित समयसीमा में बूथ स्तर के अधिकारियों के लिए करोड़ों वोटरों की सूची का सत्यापन और संशोधन कर पाना व्यावहारिक रूप से असंभव है। उन्होंने सवाल उठाया, “आप एक महीने में यह काम कैसे पूरा करेंगे? क्या यह प्रक्रिया जल्दबाजी में पूरी की जा रही है?”
नाम कटने की जताई आशंका, सुप्रीम कोर्ट के आदेश का दिया हवाला
AIMIM नेता ने यह भी आशंका जताई कि इतनी कम समयसीमा में यदि यह प्रक्रिया की गई तो बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम सूची से हट सकते हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने आदेश का हवाला देते हुए कहा कि पहले से मतदाता सूची में दर्ज किसी व्यक्ति का नाम बिना नोटिस और उचित प्रक्रिया के नहीं हटाया जा सकता।
युवा प्रवास और आपदा प्रभावित क्षेत्र बनेंगे बाधा: ओवैसी
ओवैसी ने कहा कि बिहार के लाखों युवा रोजगार की तलाश में राज्य से बाहर रहते हैं, वहीं सीमांचल जैसे इलाके बाढ़ के कारण लंबे समय तक कटे रहते हैं। ऐसे में एक सीमित समय में बीएलए (बूथ लेवल एजेंट) के लिए हर मतदाता तक पहुंचना मुश्किल होगा।
राजनीतिक दलों का संयुक्त विरोध, चुनाव आयोग से की मुलाकात
केवल ओवैसी ही नहीं, विपक्षी INDIA गठबंधन में शामिल कई दलों ने भी विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया के विरोध में चुनाव आयोग से मुलाकात की। कांग्रेस, आरजेडी, समाजवादी पार्टी, सीपीआई, सीपीएम-एल सहित कुल 11 दलों ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार से मिलकर अपनी आपत्तियां दर्ज कराईं। इन दलों का आरोप है कि यह प्रक्रिया राज्य के दो करोड़ से अधिक मतदाताओं को मतदान से वंचित कर सकती है।
कांग्रेस ने की ‘वोटबंदी’ की आलोचना
कांग्रेस ने इस कवायद को ‘वोटबंदी’ करार देते हुए कहा कि जिस प्रकार नोटबंदी से देश की अर्थव्यवस्था चरमराई थी, वैसे ही यह मतदाता पुनरीक्षण बिहार के लोकतांत्रिक अधिकारों पर प्रहार है।
चुनाव आयोग का पक्ष
उल्लेखनीय है कि राज्य भर में 1,54,977 बीएलए की तैनाती की जा चुकी है, और आयोग के अनुसार आवश्यकता अनुसार और एजेंट नियुक्त किए जाएंगे। फिर भी, समयसीमा और प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर सवाल उठते रहना जारी है।
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