हरियाणा के अशोका विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख और एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को महिला सैन्य अधिकारियों पर विवादास्पद टिप्पणी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दे दी है। अदालत ने उन्हें सोनीपत के CJM की संतुष्टि के अनुसार जमानत बांड भरने और जांच से जुड़ी किसी भी विषयवस्तु पर लेखन या वक्तव्य से दूर रहने के निर्देश दिए हैं।
इससे पहले, प्रोफेसर महमूदाबाद को 27 मई तक न्यायिक हिरासत में भेजा गया था। पुलिस द्वारा सात दिन की रिमांड की मांग अदालत ने खारिज करते हुए कहा था कि यदि जरूरत हो तो पुलिस दोबारा प्रार्थना पत्र दाखिल कर सकती है। पुलिस ने दावा किया था कि लैपटॉप, मोबाइल और बैंकिंग रिकॉर्ड की जांच आवश्यक है।
हरियाणा महिला आयोग ने भी की थी कार्रवाई
राज्य महिला आयोग ने भी प्रोफेसर को नोटिस भेजा था। आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया ने उनके बयानों को वर्दीधारी महिला अधिकारियों के प्रति अपमानजनक बताया था। आयोग का कहना था कि उनकी टिप्पणियों में सेना में महिलाओं की भूमिका को कमतर दर्शाने की प्रवृत्ति नजर आती है।
इन धाराओं में दर्ज हुई FIR
पुलिस ने उनके खिलाफ बीएनएस की कई गंभीर गैर-जमानती धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है, जिनमें राष्ट्रीय अखंडता को खतरे में डालने, सार्वजनिक भड़काऊ बयान, महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाना और धार्मिक आधार पर दुश्मनी फैलाना शामिल है।
क्या कहा था प्रोफेसर ने?
प्रोफेसर महमूदाबाद ने सेना की दो महिला अधिकारियों – कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह – की मीडिया में हुई सराहना को “दिखावा” बताया था। उन्होंने कहा था कि अगर देश में हो रही भीड़ हिंसा के खिलाफ सुरक्षा की मांग नहीं की गई तो इस तरह की सराहनाएं सिर्फ पाखंड बनकर रह जाएंगी।
आयोग की प्रतिक्रिया
आयोग ने कहा कि एक शिक्षाविद के रूप में अली खान की जिम्मेदारी थी कि वह अपने शब्दों के प्रभाव को समझते हुए सोशल मीडिया पर विचार साझा करें। आयोग का मानना है कि उनकी पोस्ट ने धार्मिक पहचान का संदर्भ पैदा कर एक संवेदनशील मसले को और जटिल बना दिया।