शर्मिला टैगोर-सैफ अली के खिलाफ कोर्ट का फैसला, पुश्तैनी संपत्ति पर फिर से होगी सुनवाई

पटौदी खानदान की पुश्तैनी संपत्ति के मामले में उच्चतम न्यायालय के रुख से अलग हटते हुए भोपाल हाईकोर्ट ने सोमवार को ट्रायल कोर्ट को पुनः सुनवाई का निर्देश दिया। जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने पुराने आदेश को रद्द करते हुए कहा कि सात महीने में नया मुकदमा पूरी तरह से निहित पक्षों के सबूतों और बदलते कानूनी परिदृश्य के मद्देनज़र सुना जाए।

यह विवाद भोपाल रियासत के अंतिम नवाब मोहम्मद हमीदुल्ला खान की निजी संपत्ति के उत्तराधिकार को लेकर वर्षों से चल रहा है। नवाब के वंशज—बेगम सुरैया रशीद, मेहर ताज नवाब साजिदा सुल्तान, नवाबजादी कमर ताज राबिया सुल्तान, नवाब मेहर ताज साजिदा सुल्तान सहित अन्य—ने 2000 में भोपाल जिला न्यायालय के फ़ैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी, जिसमें उनके आवेदन को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निचले प्रावधान के आधार पर नामंज़ूर कर दिया गया था।

पारस्परिक समझौते के तहत 1949 में भारत संघ में विलय के बाद भी नवाब के निजी संसाधनों पर उनके उत्तराधिकारी अधिकार जारी रहने का दावा पक्षों ने मुस्लिम व्यक्तिगत विधि और भोपाल सिंहासन उत्तराधिकार अधिनियम, 1947 का हवाला देते हुए किया। 1962 में केंद्र सरकार ने इनके निजी संपत्ति दर्जे की पुष्टि संविधान की परिभाषा-366(22) के तहत भी की थी।

एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि ट्रायल कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के निर्णय का अनुसरण करते हुए मामला खारिज किया, पर सुप्रीम कोर्ट ने विलय के बाद सिंहासन उत्तराधिकार अधिनियम को अधिकृत नहीं माना। इसे दृष्टिगत रखते हुए, मामले की पुनः सुनवाई करनी होगी, जिसमें नवाब मंसूर अली खान पटौदी, उनकी पत्नी शर्मिला टैगोर, अभिनेता सैफ अली खान तथा अन्य वादी-प्रतिवादियों को हिस्सेदार बनाया जा सकेगा।

नए परीक्षण में दोनों पक्षों को बदलते कानूनी हालात के अनुसार साक्ष्य पेश करने का अवसर मिलेगा और एक साल की समय सीमा में निर्णय सुनाया जाएगा।

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