मंदिर परिसर में ड्रेस कोड की अपील, हिंदू संगठनों ने लगाए पोस्टर

मध्य प्रदेश के जबलपुर में मंदिर परिसरों में पारंपरिक वस्त्र पहनने को लेकर एक विशेष अभियान शुरू किया गया है। शहर के कई प्रमुख मंदिरों के बाहर हाल ही में ऐसे पोस्टर लगाए गए हैं, जिनमें श्रद्धालुओं से भारतीय संस्कृति के अनुरूप वस्त्र पहनकर मंदिर में प्रवेश करने का अनुरोध किया गया है। पोस्टरों में विशेष रूप से कहा गया है कि छोटे कपड़े, हाफ पैंट, बरमूडा, मिनी स्कर्ट, नाइट सूट, जींस-टॉप आदि पहनने वाले श्रद्धालु मंदिर में प्रवेश न करें, बल्कि बाहर से ही दर्शन करें।

30 से अधिक मंदिरों में लगे पोस्टर

हिंदूवादी संगठनों द्वारा शुरू किए गए इस अभियान के तहत शहर के लगभग 30 से अधिक मंदिरों के प्रवेश द्वारों पर यह संदेश चस्पा किया गया है। पोस्टरों में यह भी उल्लेख है कि मंदिर न केवल पूजा का स्थान है, बल्कि भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधि भी है। इसीलिए मंदिर परिसर में पारंपरिक परिधान और सिर ढकने की परंपरा का पालन करना आवश्यक बताया गया है। यह संदेश महाकाल संघ अंतरराष्ट्रीय बजरंग दल की ओर से जारी किया गया है।

भारतीय मूल्यों की रक्षा का प्रयास

इन अपील-पत्रों में लिखा गया है कि “यदि कोई व्यक्ति पश्चिमी शैली के छोटे वस्त्रों में मंदिर आता है तो कृपया वह बाहर से ही दर्शन करें। यह आग्रह भारतीय संस्कृति की मर्यादा बनाए रखने हेतु है, इसे अन्यथा न लें।” संगठन का कहना है कि यह पहल किसी पर प्रतिबंध थोपने के उद्देश्य से नहीं है, बल्कि सनातन संस्कृति की गरिमा को बनाए रखने के लिए है।

‘सांस्कृतिक जागरूकता’ बताई गई पहल

जिला मीडिया प्रभारी अंकित मिश्रा ने स्पष्ट किया कि यह कोई बाध्यकारी नियम नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक जागरूकता अभियान है। उन्होंने कहा, “हम श्रद्धालुओं से बस इतना अनुरोध कर रहे हैं कि वे मंदिर जैसे पवित्र स्थलों पर पारंपरिक और मर्यादित पोशाक में आएं, जिससे हमारी सांस्कृतिक पहचान और सनातन परंपरा का सम्मान बना रहे।”

मिश्रित प्रतिक्रियाएं, सोशल मीडिया पर बहस

इस पहल को लेकर शहर में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोगों ने इसे भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने वाला कदम बताया है, जबकि कुछ ने इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करार दिया है। सोशल मीडिया पर भी इस विषय को लेकर बहस छिड़ गई है।

अभियान के विस्तार की योजना

संगठन की ओर से यह भी बताया गया है कि आने वाले समय में इस सांस्कृतिक अभियान को और अधिक मंदिरों तक बढ़ाया जा सकता है, ताकि समाज में परंपराओं के प्रति सम्मान और जागरूकता को और मजबूत किया जा सके।

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