सुप्रीम कोर्ट: मध्य प्रदेश के लॉ छात्र को बड़ी राहत, एनएसए के तहत कार्रवाई पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के एक कानून छात्र अनु उर्फ अनिकेत को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत की गई एहतियाती हिरासत को अवैध करार देते हुए उसकी तत्काल रिहाई के निर्देश दिए हैं। शीर्ष अदालत ने इस कार्रवाई को “पूरी तरह असंगत और अनुचित” बताया।

अनिकेत को 11 जुलाई 2024 को एनएसए के अंतर्गत हिरासत में लिया गया था। इससे पहले विश्वविद्यालय परिसर में एक प्रोफेसर से विवाद के बाद उस पर हत्या के प्रयास समेत कई धाराओं में मामला दर्ज किया गया था। वह पहले से ही जेल में बंद था, उसी दौरान जिला प्रशासन ने उसके खिलाफ एनएसए के तहत अलग से निरोध आदेश पारित कर दिया।

अदालत की टिप्पणी:
न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि एनएसए की धारा 3(2) के तहत दिए गए कारण “रोकथामात्मक हिरासत” के उपयुक्त नहीं हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि छात्र की ओर से की गई अपील को जिला मजिस्ट्रेट ने खुद खारिज कर दिया, जबकि इसे राज्य सरकार के पास भेजा जाना चाहिए था। कोर्ट ने सवाल उठाया कि जब वह पहले से न्यायिक हिरासत में था, तो एनएसए का प्रावधान क्यों लागू किया गया।

अनिकेत के खिलाफ मामलों की स्थिति:
राज्य सरकार की ओर से पेश दस्तावेज़ों के अनुसार, छात्र पर कुल नौ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें से पांच मामलों में उसे बरी किया जा चुका है, एक में केवल जुर्माना लगा है, और दो अभी विचाराधीन हैं जिनमें वह ज़मानत पर है। वर्ष 2024 के एक मामले में भी उसे जनवरी 2025 में ज़मानत मिल चुकी है। इस तरह, वह केवल एनएसए के कारण ही जेल में था।

हाई कोर्ट का रुख:
अनिकेत के पिता द्वारा दायर हबीयस कॉर्पस याचिका को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 25 फरवरी को खारिज करते हुए कहा था कि छात्र की गतिविधियां शांति-व्यवस्था के लिए खतरा हैं।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश:
शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि छात्र किसी अन्य प्रकरण में वांछित नहीं है, तो उसे तत्काल भोपाल सेंट्रल जेल से रिहा किया जाए। विस्तृत आदेश जल्द जारी किया जाएगा, लेकिन अब तक की जानकारी के आधार पर यह हिरासत न्यायोचित नहीं मानी जा सकती।

क्या है एनएसए?
नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (NSA) एक ऐसा कानून है, जो प्रशासन को किसी व्यक्ति को अधिकतम 12 महीने तक बिना मुकदमे के हिरासत में रखने की अनुमति देता है, यदि उसकी गतिविधियों से जन सुरक्षा को खतरा माना जाए। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि केवल गंभीर आरोपों के आधार पर एनएसए लागू नहीं किया जा सकता, विशेषकर जब व्यक्ति पहले से अन्य मामलों में ज़मानत पर हो या हिरासत में हो।

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