राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के प्रमुख शरद पवार ने शुक्रवार को कहा कि जब तक सरकार नागपुर-गोवा शक्तिपीठ एक्सप्रेसवे परियोजना से जुड़ी संपूर्ण जानकारी सार्वजनिक नहीं करती, तब तक वे इस पर कोई ठोस राय नहीं बनाएंगे। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि किसानों की राय और इस परियोजना के सामाजिक-आर्थिक असर को समझना अत्यंत आवश्यक है।
कोल्हापुर में मीडिया से बात करते हुए पवार ने कहा कि किसी भी नई परियोजना को लेकर शुरुआत में कुछ विरोध स्वाभाविक होता है। उन्होंने कहा, “मैं यह समझने का प्रयास कर रहा हूं कि किसानों की आपत्तियों को किस तरह दूर किया जा सकता है। ज़रूरी है कि जिनकी ज़मीन अधिग्रहण की जा रही है, उनकी बात को गंभीरता से सुना जाए।”
सरकार से विस्तृत विवरण साझा करने की मांग
पवार ने कहा कि यदि राज्य सरकार इस परियोजना का औचित्य, संभावित लाभ और किसानों के हितों की रक्षा की दिशा में उठाए जाने वाले कदमों को स्पष्ट करती है, तभी कोई ठोस निर्णय लिया जा सकता है। फिलहाल, उनके पास परियोजना से जुड़े सभी पक्षों की पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं है।
सुले ने पहले ही जताई थी आपत्ति
इस परियोजना पर एक दिन पहले उनकी बेटी और पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सुप्रिया सुले ने आपत्ति जताई थी। उन्होंने करीब 86,300 करोड़ रुपये की लागत वाली इस योजना को वित्तीय संकट से जूझ रहे राज्य पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बताया था और पुनर्विचार की मांग की थी।
प्रस्तावित एक्सप्रेसवे का दायरा
सरकारी सूत्रों के अनुसार, यह प्रस्तावित 802 किलोमीटर लंबा एक्सप्रेसवे वर्धा जिले के पवनार से शुरू होकर सिंधुदुर्ग जिले के पत्रादेवी तक जाएगा, जो महाराष्ट्र और गोवा की सीमा पर स्थित है। इस परियोजना से नागपुर और गोवा के बीच यात्रा का समय 18 घंटे से घटकर 8 घंटे हो जाने की संभावना है।
सीमा विवाद और वैश्विक राजनीति पर प्रतिक्रिया
इस मौके पर जब पवार से महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच चल रहे सीमा विवाद के बारे में सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने हाल ही में इस मुद्दे के समाधान हेतु एक उच्चस्तरीय समिति का पुनर्गठन किया है।
अंतरराष्ट्रीय मसलों पर बात करते हुए पवार ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आलोचना की। उन्होंने कहा कि ट्रंप द्वारा ईरान-इज़राइल संघर्ष विराम का श्रेय लेने का कोई आधार नहीं है, क्योंकि ऐसे फैसलों का अधिकार उनके पास नहीं है। पवार ने कहा कि ताकतवर होने का मतलब यह नहीं होता कि कोई देश अपनी मर्जी दूसरों पर थोपे।