महाराष्ट्र सरकार द्वारा पहली कक्षा से हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने के फैसले पर राज्य में राजनीतिक घमासान शुरू हो गया है। इस निर्णय को लेकर शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ ने राज्य सरकार की कड़ी आलोचना की है।
मातृभाषा पर हमला बताया
‘सामना’ ने अपने संपादकीय में लिखा कि यह कदम महाराष्ट्र की जनता की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है। लेख में कहा गया, “हमें हिंदी भाषा से आपत्ति नहीं है, लेकिन जब इसे थोपा जाएगा, तो इसका विरोध स्वाभाविक है। मराठी हमारी मातृभाषा है और यह हमारे आत्मसम्मान और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है।”
संपादकीय में यह भी आरोप लगाया गया कि केंद्र और राज्य में सत्तासीन भाजपा सरकार मराठी संस्कृति को कमजोर करने का प्रयास कर रही है। इसमें पद्म पुरस्कार पाने वाले मराठी कलाकारों पर भी सवाल उठाए गए कि वे इस विषय पर चुप क्यों हैं।
अन्य राज्यों की तुलना, केंद्र की मंशा पर सवाल
‘सामना’ में दावा किया गया कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में अंग्रेज़ी में भाषण देते हैं और डोनाल्ड ट्रंप से हिंदी में बात करते हैं, तो पूरे देश में हिंदी अनिवार्य करने की आवश्यकता क्यों है? संपादकीय में यह भी कहा गया कि गुजरात जैसे राज्यों ने अपने स्कूलों में हिंदी को हटाया है, तो महाराष्ट्र पर यह बोझ क्यों डाला जा रहा है?
‘भाषा थोपी नहीं जा सकती’
लेख में डॉ. भीमराव अंबेडकर के विचारों का हवाला देते हुए कहा गया कि किसी भी भाषा को किसी समुदाय पर जबरन नहीं थोपा जा सकता। ‘सामना’ ने बेलगांव जैसे मराठी बहुल क्षेत्रों में हिंदी को लागू न किए जाने पर भी सवाल उठाया।
अंत में यह आरोप लगाया गया कि देवेंद्र फडणवीस सरकार मराठी भाषा और संस्कृति पर “सुनियोजित हमला” कर रही है, जो राज्य की अस्मिता के खिलाफ है।