राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरद पवार गुट) के अध्यक्ष और वरिष्ठ नेता शरद पवार ने 1975 में लगाए गए आपातकाल को भारतीय लोकतंत्र के इतिहास की एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना बताया। उन्होंने कहा कि हालांकि उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसकी घोषणा की थी, लेकिन बाद में उन्होंने इसके लिए जनता से माफी भी मांगी थी।
बुधवार को मुंबई में श्रमिक संगठनों द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में बोलते हुए पवार ने नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा को संविधान की आत्मा करार दिया और कहा कि आज भी लोकतंत्र की रक्षा के लिए जागरूक रहना आवश्यक है।
“मौलिक अधिकारों की रक्षा करना आज भी जरूरी”
राज्यसभा सांसद पवार ने कहा कि देशवासियों का यह कर्तव्य है कि वे अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें और किसी भी प्रकार के दमन या उत्पीड़न के खिलाफ खड़े हों। उन्होंने कहा कि वर्तमान में भी कई बार ऐसी परिस्थितियां बन जाती हैं जब पत्रकारिता पर दबाव डाला जाता है और मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में नजर आती है।
“आज असहमति की जगह कम होती जा रही है”
शरद पवार ने अपने संबोधन में कहा कि घोषित और अघोषित आपातकाल में फर्क होता है, और आज की स्थिति में असहमति को जगह देना मुश्किल होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज की सरकार आलोचना को सहजता से स्वीकार नहीं करती, और मीडिया पर बढ़ते दबाव चिंता का विषय हैं। हालांकि उन्होंने केंद्र सरकार का सीधा नाम नहीं लिया।
आपातकाल के दौर के नेताओं को किया याद
उन्होंने समाजवादी विचारधारा के उन नेताओं को भी याद किया, जिन्होंने आपातकाल का विरोध करते हुए लोकतंत्र की रक्षा के लिए संघर्ष किया था। जॉर्ज फर्नांडिस, चंद्रशेखर और मधु दंडवते को उन्होंने संघर्षशील नेता बताते हुए कहा कि इन नेताओं ने देश के लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया।
पवार ने जॉर्ज फर्नांडिस की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनमें मुंबई जैसे महानगर को ठप कर देने की क्षमता थी। 1967 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एस. के. पाटिल को हराकर अपनी राजनीतिक ताकत साबित की थी।
कांग्रेस के भीतर भी असंतोष था: पवार
शरद पवार ने कहा कि आपातकाल के दौरान वह स्वयं पहली बार विधायक बने थे और कांग्रेस के भीतर उस दौर में काफी बेचैनी देखी थी। उन्होंने बताया कि आपातकाल के बाद कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो गई—कांग्रेस (इंदिरा) और कांग्रेस (सोशलिस्ट)। वे कांग्रेस (एस) में शामिल हुए और फर्नांडिस, चंद्रशेखर व दंडवते जैसे नेताओं के सहयोग से 1978 में महाराष्ट्र में कांग्रेस सरकार को अपदस्थ कर नई सरकार का गठन किया, जिसमें वे मुख्यमंत्री बने।
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