एंबुलेंस न मिलने पर थैले में रखा बेटी का शव, 90 KM बस से लेकर गया आदिवासी पिता

महाराष्ट्र के नासिक जिले में एक आदिवासी दंपति के साथ हुई मानवता को झकझोर देने वाली घटना सामने आई है। कटकरी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले 28 वर्षीय मजदूर सखाराम को अपनी नवजात मृत बेटी को प्लास्टिक के थैले में रखकर एमएसआरटीसी की बस से 90 किलोमीटर दूर घर ले जाना पड़ा। वजह—अस्पताल की तरफ से एंबुलेंस नहीं दी गई।

ईंट भट्टे पर दिहाड़ी करते हैं सखाराम
सखाराम व उनकी पत्नी अविता ठाणे के बदलापुर इलाके में ईंट भट्टे पर काम करते हैं। 11 जून को जब गर्भवती अविता को प्रसव पीड़ा शुरू हुई तो उन्होंने सुबह से ही एंबुलेंस के लिए कॉल किया, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। मजबूरी में निजी वाहन से उन्हें खोडाला के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया।

एक घंटे इंतजार और फिर पुलिस बुला ली गई
पीएचसी पहुंचने पर अविता को एक घंटे तक इंतजार करवाया गया, फिर मोखाडा ग्रामीण अस्पताल रेफर कर दिया गया। सखाराम का आरोप है कि वहां उन्हें एक कमरे में अलग कर दिया गया और जब उन्होंने विरोध किया तो पुलिस को बुला लिया गया। सखाराम का कहना है कि पुलिस ने उनके साथ मारपीट भी की।

नासिक सिविल अस्पताल में हुआ मृत बच्ची का जन्म
मोखाडा अस्पताल में भ्रूण की धड़कन रिकॉर्ड न हो पाने पर उन्हें नासिक सिविल अस्पताल भेजा गया। वहां 12 जून को दोपहर 1:30 बजे अविता ने मृत बच्ची को जन्म दिया। सखाराम का कहना है कि अगले दिन अस्पताल प्रबंधन ने उन्हें शव सौंप तो दिया, लेकिन अंतिम यात्रा के लिए एंबुलेंस देने से मना कर दिया।

थैले में शव लेकर बस से किया सफर
बेबस सखाराम ने 20 रुपये में एक प्लास्टिक का थैला खरीदा और उसमें बच्ची का शव रख बस से गांव तक का 90 किलोमीटर का सफर किया। उन्होंने कहा कि रास्ते में किसी ने नहीं पूछा कि वह क्या लेकर जा रहे हैं। शव को उसी दिन गांव में दफना दिया गया। 13 जून को उन्होंने पत्नी को घर लाने के लिए भी एंबुलेंस मांगी, लेकिन कोई सहायता नहीं मिली। पत्नी भी बेहद कमजोर हालत में बस से लौटी। अस्पताल की ओर से उन्हें कोई दवा तक नहीं दी गई।

अस्पताल ने दी सफाई, पिता ने किया इंकार
मोखाडा ग्रामीण अस्पताल के डॉक्टर भाऊसाहेब चत्तर ने बताया कि बच्चे की गर्भ में ही मौत हो चुकी थी और उनकी एंबुलेंस खराब थी, इसलिए उन्होंने आसे गांव से गाड़ी मंगवाई थी। उन्होंने दावा किया कि सखाराम को लौटने के लिए भी एंबुलेंस की पेशकश की गई थी, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया और एक छूट-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। हालांकि सखाराम ने इस बात को नकारा है। डॉक्टर का कहना है कि आदिवासी दंपति को हरसंभव मदद दी गई।

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