जमानत के बाद भी जेल में कैद: सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी

उत्तर प्रदेश में जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए बनाए गए कानून के अंतर्गत गिरफ्तार किए गए एक आरोपी को उच्चतम न्यायालय से जमानत मिलने के बावजूद रिहा न करने पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सख्त नाराजगी जताई। अदालत ने इसे न्याय की अवमानना और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन बताते हुए जेल प्रशासन की भूमिका पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं।

साफ निर्देश के बावजूद नहीं हुई रिहाई

न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का 29 अप्रैल का आदेश बिल्कुल स्पष्ट था, जिसमें आरोपी आफताब को शर्तों के आधार पर रिहा करने को कहा गया था। इसके बावजूद गाजियाबाद जिला अदालत द्वारा 27 मई को रिहाई आदेश जारी किए जाने के बाद भी जेल प्रशासन ने उन्हें यह कहकर रिहा नहीं किया कि आदेश में उत्तर प्रदेश धर्मांतरण विरोधी अधिनियम की धारा 5(1) का उल्लेख नहीं है।

टेक्निकल बहाने पर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती

इस पर पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि क्या उपधारा का उल्लेख न होना कोई ऐसा कारण है जिससे किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता रोकी जा सके? अदालत ने इसे अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि यदि किसी को तकनीकी कारणों से जेल में रखा गया है, तो यह गंभीर मसला है और इसमें अवमानना की कार्यवाही भी की जा सकती है।

25 जून को होगी सुनवाई, अधिकारी तलब

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक 25 जून को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से और गाजियाबाद जिला जेल अधीक्षक व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित हों और मामले में जवाब दें। अदालत ने साफ किया कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को हल्के में नहीं लिया जा सकता।

आरोपी का आरोप और अदालत की चेतावनी

आफताब ने याचिका में कहा कि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय दोनों से राहत मिलने के बावजूद वह अब तक जेल में है, क्योंकि जेल प्रशासन एक तकनीकी आपत्ति के आधार पर रिहाई में टालमटोल कर रहा है। इस पर अदालत ने आरोपी के वकील को भी चेतावनी दी कि यदि याचिका में तथ्य गलत पाए गए तो उनके विरुद्ध भी कार्रवाई की जाएगी।

निष्कर्ष
यह मामला न केवल न्यायिक आदेशों की अवहेलना को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि प्रशासनिक प्रक्रियाएं किस तरह नागरिक की स्वतंत्रता पर प्रतिकूल असर डाल सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई 25 जून को होगी, जिसमें संबंधित अधिकारी जवाबदेह होंगे।

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