उच्च टैरिफ के साथ ही खुले भारतीय कृषि बाजार के द्वार, किसानों के हित सर्वोपरि- अशोक बालियान

पीजेंट वेलफेयर एसोसिएशन के चेयरमैन अशोक बालियान के साथ नीति आयोग के सदस्य प्रो. रमेश चंद्र और वरिष्ठ सलाहकार राका सक्सेना की मौजूदगी में भारत को वैश्विक कृषि बाजार में मक्का और सेब के आयात-निर्यात पर सतर्क रहने को लेकर व्यापक चर्चा हुई।

भारत में मक्का का उपयोग विभिन्न उद्योगों में होता है, जैसे पोल्ट्री फ़ीड, पशु फ़ीड, स्टार्च निष्कर्षण, खाद्य प्रसंस्करण, निर्यात और प्रत्यक्ष मानव उपभोग। देश में मक्का उत्पादन में वृद्धि और मांग के साथ भारतीय मक्का बाजार का दायरा भी बढ़ रहा है।

वर्ष 2024–2025 में भारत में मक्का का उत्पादन लगभग 35.67 मिलियन मीट्रिक टन रहा, जबकि खपत लगभग 47.51 मिलियन टन थी। इसी अवधि में मक्का का आयात 9.5 लाख टन और निर्यात 90,311 टन रहा। इथेनॉल उत्पादन और पोल्ट्री फ़ीड की बढ़ती मांग के कारण भारत को मक्का का आयात करना पड़ रहा है।

भारत मुख्यतः म्यांमार और यूक्रेन से मक्का का आयात करता है। वर्ष 2024–2025 में भारत का म्यांमार को निर्यात 437.42 मिलियन अमेरिकी डॉलर और आयात 720.24 मिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। इसी तरह वर्ष 2024 की पहली छमाही में भारत और यूक्रेन के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 1.07 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जिसमें भारत ने यूक्रेन को 0.66 बिलियन डॉलर का निर्यात और 0.41 बिलियन डॉलर का आयात किया।

पिछले तीन वर्षों में अमेरिका ने भारत को लगभग 2.22 अरब डॉलर मूल्य के कृषि और संबद्ध उत्पादों का निर्यात किया, जबकि भारत ने अमेरिका को 5.75 अरब डॉलर मूल्य के कृषि उत्पादों का निर्यात किया। यह दर्शाता है कि अमेरिका के साथ भारत का कृषि व्यापार संतुलित और सकारात्मक रहा है।

भारत में मक्का का उपयोग भोजन में भी होता है, लेकिन इसका बड़ा हिस्सा पशु चारा, औद्योगिक उपयोग और इथेनॉल उत्पादन में खपत होता है। पोल्ट्री फ़ीड के लिए 22.25 मिलियन टन, पशु चारे के लिए 5.47 मिलियन टन, स्टार्च उद्योग के लिए 5.91 मिलियन टन और ईंधन इथेनॉल के लिए 10.26 मिलियन टन की मांग रही है।

मक्का का आयात वर्ष 2024–2025 में काफी बढ़ गया है। इथेनॉल उत्पादन और पोल्ट्री फ़ीड की बढ़ती मांग के कारण भारत को मक्का आयात करने के लिए बाध्य होना पड़ा है। भारत के लिए ऊर्जा सुरक्षा महत्वपूर्ण है, जिसे खाद्य और चारा सुरक्षा से अलग करके देखा जाना चाहिए।

भारत में वर्ष 2024–2025 में सेब का घरेलू उत्पादन 25.5 लाख टन से अधिक रहा, जबकि खपत 26.3 लाख टन से अधिक रही। विशेष रूप से प्रीमियम और आयातित सेबों की मांग, आपूर्ति से अधिक बनी हुई है। क्योंकि स्थानीय सेब का सीजन नवंबर में समाप्त हो जाता है, ऐसे में ईरान और तुर्की से आयातित सेब आपूर्ति के अंतर को पूरा करते हैं। इन आयातित सेबों ने भारतीय बाजार में अपनी जगह बना ली है। हालांकि, सेब बाजार को दीर्घकालिक रूप से स्थिर रखने के लिए स्थानीय उत्पादन और आयात के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।

भारत ने वर्ष 2024–2025 में लगभग 6 लाख टन सेब का आयात किया है। इस वृद्धि का मुख्य कारण प्रीमियम सेबों की मांग और घरेलू खपत में इजाफा है। DGCIS के आंकड़ों के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों में अकेले तुर्की से लगभग 5 लाख मीट्रिक टन सेब भारत में आया है।

भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष के दौरान तुर्की द्वारा पाकिस्तान को दिए गए समर्थन के बाद, देश में तुर्की से आयातित उत्पादों का विरोध देखा गया है। अमेरिका के साथ भारत का कृषि व्यापार बेहतर रहा है, अतः यदि सेब का आयात आवश्यक हो, तो तुर्की की बजाय अमेरिका से सेब का आयात भारत के सेब उत्पादक किसानों के हित में अधिक उचित रहेगा।

अतः उच्च टैरिफ के साथ भारत-अमेरिका कृषि व्यापार समझौते में भारतीय बाजार को उन्हीं कृषि उत्पादों के लिए खोला जाना चाहिए, जिनसे देश के किसानों को कोई क्षति न पहुंचे।

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